एमआईटी हॉस्टल में रैगिंग करने पर समस्तीपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के 8 छात्र दोषी पाए गए हैं एमआईटी के अनुशासन समिति ने 6 छात्रों को हॉस्टल से 1 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया है और 3 को ब्लैक डॉट दिया है
समस्तीपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र एमआईटी के हॉस्टल में ही रहते थे। इनपर रैगिंग का मामला सामने आने के बाद पहले हॉस्टल से निलंबित कर दिया गया था। जिन छात्रों पर आरोप लगे हैं उनमें से एक पर दस जुर्माना निष्कासित,
दूसरे पर निष्कासित एवं 25 हजार जुर्माना और ब्लैक डॉट, तीसरे दस हजार जुर्माना , व एक वर्ष के लिए हॉस्टल से निष्कासित चौथे पर दस हजार जुर्माना और 1 वर्ष के लिए हॉस्टल से निष्कासित, पांच में छात्र पर 25 हजार जुर्माना एक वर्ष का निष्कासन और ब्लैक डॉट, छठे छात्र पर दस हजार जुर्माना, सातवें में छात्र पर दस हजार और आठवें छात्र को ब्लैक डॉट 25 हजार जुर्माना 1 वर्ष के लिए निष्कासित का दंड दिया गया है,
रैगिंग एक ऐसा शब्द है जो हर साल कॉलेज शुरू होते ही सुनाई
दुनियाभर में हर साल लाखों स्टूडेंट्स को इसका सामना करना पड़ता है और यह भयावह रूप ले चुका। अब कॉलेजों में रैगिंग को रोकने के लिए कई कठोर कदम उठाए गए हैं। हालांकि रैगिंग के खिलाफ कठोर कानून बनने पर अब इस धीरे—धीरे लगाम कर कर रही है लेकिन पूरी तरह नहीं। रैगिंग को दुनिया में अलग-अलग नामों से पहचाना जाता है। इसको हेजिंग, फेगिंग, बुलिंग, प्लेजिंग और हॉर्स प्लेइंग के नामों से जाना जाता है। यहां हम आपको बता रहे है कि यह सामाजिक बुराई ने कब से जानलेवा रूप धारण किया और कैसे भारत तक पहुंच गई।माना जाता है कि 7 से 8वीं शताब्दी में ग्रीस के खेल समुदायों में नए खिलाड़ियों में स्पोर्ट्स स्प्रिट जगाने के उद्देशय से रैगिंग की शुरुआत हुई।
इसमें जूनियर खिलाड़ियों को चिढ़ाया और अपमानित किया जाता था। यह कार्य समय के साथ—साथ बढ़ता गया और रैगिंग में बदलता गया। इसके बाद सेना में भी इसको अपनाया गया। खेल और सेना के बाद रैगिंग से शिक्षण संस्थान भी नहीं बचे और छात्रों इसको अपनाकर भयावह रूप दे दिया।
छात्र संगठनों ने दिया रैगिंग को बढ़ावा
धीरे—धीरे कॉलेजों में शैक्षणिक क्षेत्र में जगह बनाने के बाद रैगिंग हिंसक हो गई और इसके लिए बाकायदा ग्रुप बन गए। 18वीं शताब्दी के दौरान विश्वविद्यालयों में छात्र संगठन बनाने लगे जिनमें विशेष रूप से यूरोपीय देश शामिल थे। इन संगठनों के नाम अल्फा, फी, बीटा, कपा, एपिसिलोन, डेल्टा आदि जैसे ग्रीक अक्षरों के नाम पर रखे जाने लगे। इन संगठनों को भाईचारे के रूप में देखा जाने लगा। इसके बाद नए छात्रों की रैगिंग ली जाने लगी।
1873 में हुई रैगिंग से पहली मौत
रैगिंग की वजह से दुनिया में पहली मौत 1873 में हुई थी। रैगिंग के शिकार छात्र की न्यूयॉर्क की कॉरनेल यूनिवर्सिटी की इमारत से गिरने पर मौत हो गई थी। सेना में भी प्रथम विश्वयुद्ध के बाद रैगिंग बेहद खतरनाक हो गई। जब युद्ध से वापस लौटे सैनिकों ने कॉलेजों में प्रवेश लेना शुरू किया तो उन्होंने रैगिंग की नई तकनीक हैजिंग को ईजाद किया। इस तरीके को उन्होंने मिलिट्री कैंपों में सीखा था। सैनिकों के इस नए नियम से कॉलेज के आम छात्र वाकिफ नहीं थे जिस वजह से उनकी और सैनिकों की झड़पें होने लगीं। इसी के चलते 20वीं सदी के आते-आते पश्चिमी देशों में रैगिंग से जुड़ी हिंसक घटनाएं काफी बढ़ गईं।
भारत में ऐसे आई रैगिंग
भारत में रैगिंग की शुरूआत आजादी से पहले ही हो गई थी। इसकी शुरूआत अंग्रेजी मीडियम की शिक्षा से हुई। हालांकि भारत में रैगिंग का अलग तरीका था जिसमें सीनियर और जूनियर के बीच दोस्ती बढ़ाने के लिए हल्की-फुल्की रैगिंग की जाती थी। इसमें शालीनता का परिचय दिया जाता था। लेकिन 90 के दशक में भारत में रैगिंग ने विकराल रूप ले लिया। इसके बाद 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत में रैगिंग पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही यूजीसी ने भी रैगिंग के खिलाफ सख्त नियम बनाए हैं।