ये तस्वीर भारतीय राजनीति में विचारों के समागम की दिलचस्प गवाही है. आज के राजनीतिक चश्मे से देखें तो अटल बिहारी वाजपेयी और लालू यादव का एक मंच पर, एक उद्देश्य के लिए आना असंभव सा लगता है. लेकिन ये उन दिनों की बात है जब अटल बिहारी वाजपेयी गांधीवादी समाजवाद से हिन्दुत्व की विचारधारा के संक्रमण काल में थे. किसान नेता चौधरी चरण सिंह किसान-संघर्ष और ग्रामीण लोकतंत्र के प्रतीक थे. उनका लोक दल जमींदारी उन्मूलन और कृषि सुधार पर केंद्रित था. वहीं JP आंदोलन के युवा योद्धा लालू यादव, OBC सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय के नए चेहरे थे.
इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्षी एकता ने इन तीनों दिग्गजों को एक मंच पर ला खड़ा किया था. किसान, हिन्दुत्व और पिछड़े वर्ग राजनीतिक की विचारधाराएं एक ओपन जीप में सिमट गईं. और इंदिरा गांधी को ताल ठोंककर चुनौती देने लगीं.
इस तस्वीर में भारत के दो पूर्व प्रधानमंत्री एक खुली जीप में खड़े दिखाई दे रहे हैं. एक ओर हैं चौधरी चरण सिंह तो दूसरे सिरे पर हैं अटल बिहारी वाजपेयी. इस तस्वीर की जो सबसे अनूठी विशेषता है, वो है वाजपेयी के ठीक पीछे हुंकार भरते युवा लालू यादव.
1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुए तो देश को तेज-तर्रार ओजस्वी और युवा सांसद मिला. नाम था लालू प्रसाद यादव. लालू यादव मात्र 29 साल की उम्र में जनता पार्टी के टिकट पर छपरा से सांसद बन गए.
इंदिरा के विरोध में जनमत हासिल कर दिल्ली में आई जनता पार्टी की सरकार अंतर्विरोधों से घिरी थी. जल्द ही ये सरकार गिर गई. 1980 में जब फिर से चुनाव हुए तो लालू यादव छपरा सीट से जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन इंदिरा लहर में हार गए.
हार के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बिहार में सक्रिय होकर जयप्रकाश नारायण आंदोलन के पुराने साथियों से संपर्क बनाए रखा. लालू यादव इसी साल चौधरी चरण सिंह की लोक दल में शामिल हो गए और गांव-गांव घूमकर किसान रैलियां करने लगे. यहां वे यादव, कुर्मी और कोअरी समुदायों को एकजुट करने लगे. लालू यादव इस दौरान चरण सिंह के नजदीक हुए.
बता दें कि चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी का विभाजन करके जनता पार्टी (सेक्युलर) बनाई थी और 1979 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का नाम बदलकर लोकदल कर दिया. लोकदल आगे चलकर लोकदल (चरण सिंह) और लोकदल (कर्पूरी ठाकुर) में विभाजित हो गया.
अटल बिहारी वाजपेयी, लालू यादव और चरण सिंह के ये तस्वीर उसी दौरान की है. charansingh.org के अनुसार ये तस्वीर 1982 की है.
इस संस्था का काम काज देखने वाले हर्ष सिंह लोहित बताते हैं कि ये उस दौरान लालू यादव, नीतीश कुमार जैसे नेता चौधरी साहब (चौधरी चरण सिंह) के साथ काम कर रहे थे. हर्ष सिंह लोहित ने कहा कि इस तस्वीर की तारीख स्पष्ट नहीं है लेकिन ये तस्वीर उसी समय की है.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1981-82 में हरियाणा के भिवानी में एक रैली की थी. इस रैली में वाजपेयी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह और पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल भी शामिल हुए थे.
1983 में भी बना था एक एनडीए, साथ आए थे अटल और चरण सिंह
आज सत्तारूढ़ NDA के बारे में हम सभी जानते हैं. लेकिन एक एनडीए 1983 में भी बना था. हालांकि इसका राजनीतिक जीवन काफी छोटा रहा. 1980 में इंदिरा गांधी केंद्र की सत्ता में लौट चुकी थीं और विपक्ष बिखरा हुआ था. जनसंघ से बनी बीजेपी इंदिरा गांधी की आभा के सामने फीकी पड़ रही थी.
इसी समय, विपक्ष के दो बड़े दलों, लोकदल (सी) और भाजपा के बीच विलय के प्रयास भी चल रहे थे.
भाजपा अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी और चरण सिंह के बीच बातचीत चल रही थी. जनता पार्टी के अपने अनुभव से चोट खाई बीजेपी चरण सिंह के प्रस्ताव को बार-बार ठुकराती रही. लेकिन पार्टी को लगता था कि हिंदी पट्टी और राष्ट्रीय राजनीति में सार्थक और दमदार हस्तक्षेप के लिए सहयोगी की जरूरत है.
इसी रस्साकशी में अगस्त 1983 के मध्य में इन दोनों दलों को मिलाकर एनडीए का गठन हुआ.
समझौते के अनुसार चरण सिंह लोकसभा में एनडीए के नेता और लालकृष्ण आडवाणी राज्यसभा में एनडीए के नेता बने. जबकि वाजपेयी संसदीय दल के अध्यक्ष बने. ये ऐतिहासिक दिन 17 अगस्त 1983 थी. इसके बाद इस गठबंधन ने इंदिरा गांधी के खिलाफ कई सामूहिक रैलियां की.
charansingh.org से जुड़ी वेबसाइट के अनुसार 1983 में हुई एक रैली में चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और लालू यादव फिर एक साथ एक मंच पर इकट्ठा हुए. हर्ष सिंह लोहित के अनुसार ये रैली 1983 से 1984 के बीच कभी हुई है. लेकिन इसकी तारीख स्पष्ट नहीं है.
लालू यादव 1985 में बिहार विधानसभा के लिए हुए एक बार फिर से निर्वाचित हुए. इसके बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक बिहार में सामाजिक प्रयोगों पर फोकस कर दी. 1989 में वह बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने.

