बिहार की सत्ता पर बीजेपी के सहयोग से काबिज जेडीयू में शह-मात का खेल शुरू हो गया है. कभी नीतीश कुमार के राइट हैंड रहे आरसीपी सिंह का पहले राज्यसभा से पत्ता कटा और अब अजय आलोक सहित उनके चार करीबी नेताओं को जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. जेडीयू में मचे सियासी घमासान के बीच जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि आरसीपी सिंह को पार्टी का संदेश समझ कर मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे देना चाहिए. इस तरह से जेडीयू में आरसीपी के लिए यह रेड सिग्नल है?
बता दें कि आरसीपी सिंह बतौर राज्यसभा सदस्य जेडीयू कोटे से केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री हैं, लेकिन उनका राज्यसभा का कार्यकाल सात जुलाई को समाप्त हो रहा है. जेडीयू ने उन्हें इस बार राज्यसभा नहीं भेजा, जिसके चलते मोदी सरकार से मंत्री पद छोड़ने का दबाव बढ़ गया है.
संवैधानिक दृष्टि से मंत्री बने रहने के लिए उनका छह महीने के अंदर संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनना जरूरी है, लेकिन जेडीयू से उनके इस्तीफे की मांग उठने लगी है.
इस्तीफा दे दें आरसीपी
उपेंद्र कुशवाहा ने साफ कर दिया है कि आरसीपी सिंह की आगे जेडीयू में क्या भूमिका रहेगी. इसका फैसला उन्हें खुद करना है. जेडीयू में उन्हें दायित्य दिया जाएगा, फिलहाल यह तय नहीं है. कुशवाहा ने कहा कि संविधान के हिसाब से कोई संसद सदस्य नहीं तो मंत्री पद पर नहीं बना रह सकता. ऐसे में उन्हें नैतिक आधार पर केंद्र के मंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.
जेडीयू में एक्शन और रिएक्शन शुरू
आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजे जाने के बाद उनके समर्थकों ने मोर्चा खोल दिया है तो जेडीयू ने उनके करीबी नेताओं पर एक्शन लेना शुरू कर दिया है. जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने आरसीपी के करीबी नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया है. पार्टी प्रवक्ता डा. अजय आलोक, प्रदेश महासचिव अनिल कुमार, प्रदेश महासचिव विपिन कुमार यादव तथा समाज सुधार सेनानी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष जितेंद्र नीरज को बर्खास्त कर दिया.
जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह और वर्तमान अध्यक्ष ललन सिंह के बीच सियासी वर्चस्व की जंग जगजाहिर है. ललन सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद एक-एक कर आरसीपी सिंह के समर्थकों पर गाज गिरती रही है. आरसीपी सिंह को जेडीयू में बीजेपी का चेहरा मानने वालों की भी कमी नहीं है. इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें तीसरी बार राज्यसभा नहीं भेजने का बड़ा फैसला किया. जेडीयू ने झारखंड के खीरू महतो को राज्यसभा भेजा.
नीतीश कुमार को खटकने लगे थे आरसीपी?
राज्यसभा का कैंडिडेट नहीं बनाए जाने के बाद आरसीपी सिंह ने सधी प्रतिक्रिया देते हुए इसके लिए सीएम नीतीश कुमार को धन्यवाद दिया, हालांकि, आरसीपी ने नौकरशाही के रास्ते से नीतीश कुमार के भरोसे सियासत में एंट्री की थी. आरसीपी और नीतीश कुमार एक ही जिले नालंदा और एक ही जाती कुर्मी समुदाय से आते हैं. ऐसे में दोनों ही नेताओं की दोस्ती गहरी होती गई और आरसीपी देखते ही देखते नीतीश कुमार के आंख और कान बन गए.
नीतीश कुमार की मनमर्जी पर आरसीपी का सियासी भविष्य संवरता गया. नीतीश ने जेडीयू की कमान छोड़ी तो आरसपी ने थामा, लेकिन जैसे ही मोदी कैबिनेट में शामिल होकर दिल्ली की सियासत में खुद को आरसीपी ने स्थापित करने की कोशिश की, वैसे ही नीतीश कुमार ने सबक सिखाने का ठान लिया. हालांकि, नीतीश ये बात समझ रहे थे कि आरसीपी कभी जनाधार वाले नेता नहीं हो सकते, जो नीतीश कुमार को उस तरह की चुनौती कभी नहीं देते जैसा कोई जनाधार वाला नेता दे सकता था. इसीलिए अब उनके करीबी नेताओं को बाहर निकलकर सियासी तौर पर उन्हें कमजोर करने की रणनीति है.
आरसीपी सिंह के साथ भी नीतीश कुमार ने ऐसा ही सियासी दांव चला है. राज्यसभा की रेस से उन्हें बाहर करने के बाद अब सबकी निगाहें इस बात पर होंगी कि आरसीपी सिंह कब और कैसे केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हैं. आरसीपी पर मंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ता जा रहा है, लेकिन उन्होंने यह कह कर जेडीयू का पारा गर्म कर दिया है कि वो प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के बाद फैसला लेंगे.
हालांकि, बीजेपी शीर्ष नेतृत्व आरसीपी सिंह के प्रति सहानुभूति रखने के बावजूद फिलहाल उनके साथ खड़ी नहीं हो सकती है. इसके पीछे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी को नीतीश कुमार के साथ की जरूरत होगी. आरसीपी सिंह के साथ दिक्कत है कि पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं में उनकी बहुत लोकप्रियता नहीं है, जिसके दम पर नीतीश को चुनौती दे सकें और अब उन्हें कुशवाहा ने साफ संदेश भी दे दिया है. ऐसे में देखना है कि आरपीसी सिंह क्या सियासी दांव चलते हैं?
Source : Aaj Tak