1 अक्टूबर 2024 को इजराइल के ऊपर ईरान ने 180 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें छोड़ीं, जिसका आदेश ईरान के सुप्रीम लीडर अयतु अली खमनी ने दिया था। ईरान की आईआरजीसी ने दावा किया कि 90% मिसाइलें अपने लक्ष्य पर लगीं, जबकि इजराइल का कहना है कि ज्यादातर का इंटरसेप्ट कर लिया गया। हालात गंभीर हैं क्योंकि इजराइल ने इसे न्यूनतम नुकसान बताया, लेकिन प्रधानमंत्री नीतन याहू ने प्रतिशोध की बात कही। इस युद्ध की जड़ पिछले साल से जुड़ी है, जब हमास ने इजराइल पर हमला किया था। अब ये संघर्ष कई देशों तक फैल चुका है, जिसमें ईरान का भी प्रत्यक्ष है। मीडिया ने इसे विश्व युद्ध 3 का आगाज़ बताया है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब ईरान ने इजराइल पर हमला किया हो; अप्रैल में भी ईरान ने 300 से ज्यादा ड्रोन इजराइल पर छोड़े थे। ईरान ने यह हमला उस इजराइली हवाई हमले के प्रतिशोध में किया था, जिसमें ईरान के सात अधिकारी मारे गए थे।
इजराइल के हवाई डिफेंस सिस्टम की बात करें तो इसमें आयरन डोम सबसे प्रमुख है, जो रॉकेट्स को गिरने से रोकने में सक्षम है। हालांकि, ईरान और इजराइल के बीच दूरी लगभग 1000 किमी है, जिससे ड्रोन हमले की तैयारी में समय मिल जाता है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि इजराइल के सहयोगी देश जैसे अमेरिका और यूके ने भी इजराइल की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इजराइल ने अपनी एयर स्ट्राइक को एक सैन्य इमारत के खिलाफ बताया, लेकिन ईरान के अनुसार यह एक एंबेसी थी, जिससे तनाव और बढ़ गया। अब इस स्थिति में ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते सैन्य संघर्ष को लेकर कई तकनीकी पहलुओं और राजनीतिक कारणों को समझना आवश्यक हो गया है।
इजराइल के मिसाइल डिफेंस सिस्टम की चर्चा की जाए, तो इनकी क्षमता और खर्च दोनों महत्वपूर्ण हैं। आयरन डोम छोटे रॉकेट्स को इंटरसेप्ट करता है जबकि अन्य सिस्टम जैसे डेविड स्लिंग और एरो सिस्टम अलग-अलग रेंज के लिए होते हैं। ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलें, जो अक्टूबर में छोड़ी गईं, आयरन डोम और डेविड स्लिंग के दायरे से बाहर थीं। एरो सिस्टम कुछ हद तक प्रभावित हो सकता है, लेकिन इसकी संचालन लागत भी बहुत अधिक है। मिसाइल के इंटरसेप्शन के लिए तामीर मिसाइल का उपयोग होता है, जिसकी लागत $50,000 से लेकर कई मिलियन डॉलर तक होती है।
अगर हमले की संख्या बढ़ती है, तो इजराइल के डिफेंस सिस्टम्स पर दबाव पड़ेगा क्योंकि इनकी सीमित संख्या और उच्च लागत होती है। ईरान की फॉरेन मिनिस्ट्री के प्रवक्ता ने बयान दिया कि उनके द्वारा किए गए हमले एक सीमित आत्म-रक्षा की कार्रवाई थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ईरान अपनी शक्ति प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहा है। उनकी कुछ नई मिसाइलें जैसे 2023 की फतेह मिसाइलें हाइपरसोनिक हैं, जिनकी गति ध्वनि से भी तेज है।
रॉकेट्स और मिसाइलों के बीच का अंतर भी महत्वपूर्ण है। जहां रॉकेट्स छोटे होते हैं और लक्ष्य को प्रक्षिप्त करते हैं, वहीं बैलिस्टिक मिसाइलें बड़ी होती हैं और सटीक लक्ष्यीकरण की क्षमता रखती हैं। अप्रैल के हमले के बाद, यूएन सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक में दोनों पक्षों को तनाव कम करने की सलाह दी गई। इजराइल पर हिज़बुल्ला और हौती जैसे समूहों के हमले पहले से होते आए हैं, लेकिन इजराइल के जवाबी हमले के बाद इनमें वृद्धि हुई है। ये संगठन ईरान के लिए प्रॉक्सी की तरह काम करते हैं, जिसे एक्सेस ऑफ रेजिस्टेंस भी कहा जाता है। ईरान इन समूहों को वित्तीय और सैन्य सहायता प्रदान करता है, जिससे यह संघर्ष और भी जटिल होता जा रहा है।
हिज़्बुल्ला के इतिहास और कार्यों को देखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि इस संगठन ने लेबनान में महत्वपूर्ण सैन्य शक्ति हासिल की है। इसके गठन के पीछे इजराइल के खिलाफ विरोध और पश्चिमी ताकतों को अपने क्षेत्र से बाहर निकालने की कोशिश है। हिज़्बुल्ला को अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा आतंकवादी संगठन मानने के बावजूद, भारतीय सरकार इसे इस श्रेणी में नहीं रखती। 2006 में हुए युद्ध में भी इजराइल और हिज़्बुल्ला नतीजे में बग़ैर किसी स्पष्ट विजेता के समाप्त हुए थे। वर्तमान में, हिज़्बुल्ला की गतिविधियाँ इजराइल के खिलाफ खुली लड़ाई में तब बढ़ गईं जब 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजराइल पर हमला किया, जिसके तुरन्त बाद हिज़्बुल्ला ने युद्ध की स्थिति घोषित की।
दूसरी ओर, यमन में हौती आंदोलन की शुरुआत 1990 में हुई, जो शियाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। इसे भी कई देशों द्वारा आतंकवादी संगठन मान लिया गया है, जबकि भारत इसे स्वीकार नहीं करता। ईरान, हुती समूह को वित्तीय मदद देता है जबकि सऊदी अरब यमन सरकार के समर्थन में है। इस द्वंद्व में दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रीय संघर्षों में अपने-अपने सहयोगियों को समर्थन दिया है। सऊदी अरब, जो सुन्नी मजबूत है, ईरान, जो शिया का गढ़ है, के खिलाफ खड़ा है, जिससे उनके बीच का तनाव बढ़ता जा रहा है।
इजराइल की कार्रवाई पुराने संघर्षों की निरंतरता में एक नया मोड़ है, जहां 7 अक्टूबर 2023 और 22 सितंबर 2024 के बीच लगभग 41,000 से अधिक फलस्तीनी लोग मारे गए हैं, जिसमें आधे से अधिक बच्चे और महिलाएँ शामिल हैं। इस समय, दो मिलियन से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। जॉनाथन ग्लेजर, एक प्रमुख फिल्म निर्माता, ने हाल में एक समारोह में यह दर्शाया कि कैसे ऐतिहासिक आघातों का प्रयोग वर्तमान में मानवता के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को अनदेखा करने के लिए किया जा रहा है।
जिन समूहों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, वे लगातार दमन का सामना कर रहे हैं, और उनके प्रति सख्त प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं। 80000 से अधिक इजराइली नागरिकों को अपने शहर छोड़ने पड़े हैं क्योंकि वहाँ से रोज़ाना रॉकेट फायर हो रहे हैं। रेड सी में जहाज़ों पर मिसाइल हमलों के कारण लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार हानि हुई है। ईरान ने अप्रैल के हमलों में सक्रिय रूप से भागीदारी नहीं दिखाई, लेकिन 14 अप्रैल को उसके जनरल ने स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर उनके नागरिकों या संपत्तियों पर हमला हुआ तो वे प्रतिक्रिया देंगे। जुलाई में, इजराइल के हमलों के परिणामस्वरूप उच्च-प्रोफ़ाइल हत्याएँ शुरू हुईं, जिसमें हमास के नेताओं की हत्या शामिल थी, जो इजराइल की कार्रवाई पर प्रतिशोध के रूप में देखी गईं।
सितंबर में हुए हमलों में हिज़्बुल्लाह के कई नेता मारे गए, और ईरान स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सक्रियता बढ़ाने लगा। 25 और 27 सितंबर को हिज़्बुल्लाह व ईरान के प्रमुख सैन्य नेताओं को लक्षित करने वाले हवाई हमले किए गए, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। इजराइल की ओर से किए गए इन निरंतर हवाई हमलों का संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका दोनों ने विरोध किया।
1 अक्टूबर को ईरान द्वारा इजराइल पर मिसाइल हमले की चेतावनी दी गई, जिसका कारण हिज़्बुल्ला के नेताओं की हत्याएं थीं। ईरान के इस हमले में स्थिति नियंत्रित रहने की कोशिश की गई, लेकिन इजराइल ने चेतावनी दी कि वह ऐसा नहीं होने देगा। यह एक सिलसिलेवार प्रतिक्रिया का हिस्सा है, जिसमें हर पक्ष अपने प्रतिशोध के लिए नए हमलों का सहारा ले रहा है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव और भारत सरकार दोनों ने इन घटनाओं की निंदा की, लेकिन भारत ने फिर भी किसी एक पक्ष को सीधे आरोपित नहीं किया। भारतीय विदेश मंत्री ने क्षेत्र में बढ़ते तनाव पर चिंता जताई और संवाद एवं कूटनीति के माध्यम से समस्याओं को हल करने का आग्रह किया।
इस स्थिति में जवाब देने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय मानवता कानून का ध्यान रखा जाए ताकि नागरिकों को कोई नुकसान न पहुंचे। आम जनता हमेशा इन संघर्षों में सबसे अधिक पीड़ित होती है, जबकि नेता और राजनीतिज्ञ अक्सर प्रतिशोध की भावना के तहत एक-दो के बाद एक कदम उठाते रहते हैं। अधिकांश समय, उनकी जनता भी इनकी कार्यवाहियों से असहमत होती है। महात्मा गांधी की यह उक्ति कि “आंख के बदले आंख केवल पूरे विश्व को अंधा बना देती है,” इस समय पर सही बैठती है क्योंकि इस युद्ध को और नहीं बढ़ने देने के लिए गांधी जी के बताए मार्ग का अनुसरण करना अनिवार्य है।
बहुत से लोग इस स्थितियों के पीछे हथियारों के व्यापारियों को जिम्मेदार मानते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने हथियार बेचते हैं। उनका व्यवसाय युद्धों पर निर्भर करता है, और यदि दुनिया में युद्ध नहीं होंगे, तो उनके उत्पादों की मांग कम हो जाएगी। वीडियो में, इस हथियार व्यापार के पीछे की सच्चाई को उजागर किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि संघर्षों को बढ़ावा देने में ये कंपनियां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।