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राजनीति

नीतीश से चिराग, तेजस्वी से सहनी नाराज… बिहार चुनाव में NDA-INDIA गठबंधन का ये हाल

Saroj Raja
Last updated: 2025/07/28 at 8:49 AM
Saroj Raja
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9 Min Read
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बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गयी है. बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) चुनाव से पहले पूरी ताकत से मैदान में है और दोनों ही गठबंधन के नेता चुनाव में जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन इस जीत के दावे के बीच प्रमुख गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन के भीतर से असंतोष के सुर तेज होते जा रहे हैं.

Contents
एनडीए में रहकर चिराग का नीतीश पर वार2020 चुनाव की राह पर चिराग पासवानमहागठबंधन में भी संकट, सहनी की सख्त चेतावनीसीटों के बंटवारे पर मचा है घमासान

एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर खुलकर हमला बोल रहे हैं और वह राज्य की बिगड़ती कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल उठा रहे हैं और अफसोस जता रहे हैं कि उन्हें इस सरकार को समर्थन देना पड़ रहा है. एनडीए के अन्य घटक दल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) से भी उनकी तकरार चल रही है. महादलितों को तोड़ने के मुद्दे पर उनकी ‘हम पार्टी के संरक्षक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से उनकी तीखी नोंकझोंक हुई है.

वहीं, दूसरी तरफ महागठबंधन में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश सहनी ने भी तेजस्वी यादव से खुलकर नाराजगी जता रहे हैं और वह खुद को उपमुख्यमंत्री घोषित करने की मांग कर रहे हैं. दूसरी ओर, महागंठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी दोनों ही साथ चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं, लेकिन तेजस्वी यादव स्वघोषित सीएम पद के उम्मीदवार हैं. कांग्रेस ने अभी तक इस बाबत कोई घोषणा नहीं की है.

एनडीए में रहकर चिराग का नीतीश पर वार

चिराग पासवान एनडीए के घटक दल हैं और केंद्रीय मंत्री भी हैं, लेकिन सहयोगी दल रहते हुए वह लगातार राज्य की कानून-व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार पर हमला बोल रहे हैं. राज्य की कानून-व्यवस्था की आलोचना करते हुए उन्होंने यहां तक कह दिया है कि ऐसी सरकार का समर्थन करते हुए उन्हें दुख हो रहा है, जो सरकार राज्य में बढ़ते अपराध को रोकने में विफल रही है.

लोजपा नेता ने आरोप लगाया कि या तो प्रशासन की इसमें मिलीभगत है, या प्रशासन पूरी तरह से निकम्मा हो गया है… मुझे शर्म आती है कि मैं ऐसी सरकार का समर्थन कर रहा हूं, जिसके राज में अपराध बेकाबू हो गया है.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार पर हमला बोला हो. पिछले हफ्ते भी चिराग पासवान ने पटना के पारस अस्पताल में हुई एक हत्या पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अपराधियों का मनोबल आसमान छू रहा है. हाल के महीनों में, केंद्र की एनडीए सरकार में सहयोगी चिराग पासवान ने कहा है कि वह कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर नीतीश सरकार से खुश नहीं हैं.

नीतीश सरकार की यह आलोचना वह ऐसे समय कर रहे हैं कि जब लोजपा (रालोद) नेता ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी आगामी चुनावों में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. चिराग पासवान के बयान से यह संकेत मिल रहा है कि भले ही वो एनडीए में हैं, लेकिन सीटों को लेकर वह समझौता करने को तैयार नहीं है. हालांकि इसमें बीजेपी की भूमिका बहुत ही अहम होगी कि वह चिराग पासवान को समर्थन देती है या फिर नीतीश कुमार को तवज्जो देती है.

2020 चुनाव की राह पर चिराग पासवान

2020 के विधानसभा चुनावों में, चिराग पासवान की पार्टी ने एनडीए गठबंधन से बाहर बिहार चुनाव लड़ने का फैसला किया था. हालांकि उनकी पार्टी ने उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा, जहां भाजपा चुनाव लड़ रही थी, फिर भी लोजपा के उम्मीदवार उस सीट पर लड़े जहां नीतीश कुमार की जदयू चुनाव लड़ रही थी, ताकि भाजपा के वोटों को अपने पक्ष में कर सके. उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान खुद की पीएम मोदी का ‘हनुमान’ बताया था.

हालांकि उनकी पार्टी ने बिहार विधानसभा में केवल एक सीट जीती, लेकिन जदयू को केवल 43 सीटों तक सीमित रखने में कामयाब रही. माना गया कि कम से कम 32 सीटों पर नुकसान चिराग की वजह से हुआ था.

चिराग और नीतीश कुमार में पहले ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है. चिराग पासवान उनकी पार्टी को तोड़ने के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराते है और उनके पिता की पार्टी दो हिस्सों में बंट गई थी. साल 2021 में उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में लोजपा से अलग पार्टी बनाई और उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में जगह भी मिली थी जबकि चिराग पासवान अपनी पार्टी में अकेले सांसद थे और इस कारण उनसे पिता रामविलास पासवान का सरकारी आवास भी छिन गया था.

महागठबंधन में भी संकट, सहनी की सख्त चेतावनी

ऐसा नहीं है कि केवल एनडीए में ही खींचतान मची हुई है. महागठबंधन भी इससे अछूता नहीं है. विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी लगातार उपमुख्यमंत्री पद की मांग दोहरा रहे हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर उन्हें उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो राजद नेता तेजस्वी यादव भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे.

मुकेश सहनी पहली बार ऐसा बयान नहीं दिया है. साल 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने महागठबंधन से 25 सीटें की मांग की थी और उपमुख्यमंत्री पद मांगा था, लेकिन जब यह मांग पूरी नहीं हुई तो वे बीच में ही प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़कर चले गए थे और बाद में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपने कोटे से 11 सीटें दी थी और एनडीए में शामिल हो गए थे.

अब 2025 में फिर से मुकेश सहनी महागठबंधन का हिस्सा बन ये हैं और दोबारा वही मांग दोहरा रहे है कि कम से कम वीआईपी 60 सीटें दी जाएं और उपमुख्यमंत्री पद भी दिया जाए, लेकिन वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह सरल नहीं दिखता है, क्योंकि महागठबंधन में पहले से ही आरजेडी, कांग्रेस, माकपा, भाकपा और भाकपा माले जैसी पार्टियां शामिल हैं, और कोई भी दल अपने हिस्से की सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है. ऐसे में वीआईपी की 60 सीटें क्या 15 सीटों की की मांग पूरा करना तेजस्वी यादव के लिए संभव नहीं होगा.

सीटों के बंटवारे पर मचा है घमासान

पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बाद अति पिछड़े समुदाय का नेता बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले सहनी वीआईपी के 60 सीटों के दावे को सही ठहराते हैं. उनका कहना है कि निषाद समुदाय के पास 12% वोट हैं ऐसे में इतनी सीटों पर उनका हक बनता है.

नीतीश कुमार की तरह से मुकेश सहनी का भी गठबंधन बदलने का इतिहास रहा है. उन्होंने 2015 में भाजपा के लिए प्रचार किया, महागठबंधन के साथ 2019 और 2024 के आम चुनाव लड़े और बाद में एनडीए में शामिल हो गए थे. राजनीतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि कैसे सहनी पिछले चुनाव के दौरान इसी तरह के विवादों को लेकर महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर चले गए थे.

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने 148 सीटों में से 75 पर जीत हासिल की, जिसमें उसने चुनाव लड़ा था और महागठबंधन बहुमत से चूक गया, उसने 110 सीटें (37.6% वोट शेयर) हासिल कीं, कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 19 सीटें जीत सकी, जबकि सीपीआई (एमएल) का स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा रहा, जिसने 19 में से 12 सीटें जीतीं. तीनों वामपंथी दलों ने 16 सीटें जीतीं और इस बार अधिक हिस्सेदारी के लिए दबाव बना रहे हैं. ऐसे ये बयानबाजी सीटों के बंटवारे के पहले का राजनीतिक दबाव माना जा रहा है. सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीति के तहत प्रेशर बनाने की कोशिश कर रही है.

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