बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में जमकर सियासी दांवपेंच खेले जा रहे हैं. सुशासन बाबू से बिहार की सियासत शुरू करने वाले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव से पहले फ्रीबीज की बौछार कर रहे हैं. राज्य में कर दिन एक नई घोषणाएं की जा रही हैं और नीतीश कुमार फ्री बिजली से लेकर नौकरी, मानदेय में इजाफा जैसी घोषणा कर हर वर्ग को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं.
बिहार में जहां जातिगत निष्ठाएं पारंपरिक रूप से चुनावी-राजनीतिक नतीजों को तय करती रही हैं. वहां यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुफ्त सुविधाएं जातिगत पहचान पर भारी पड़ सकती हैं? वहीं, विपक्षी पार्टियां कांग्रेस और आरजेडी लगातार राज्य के विकास, नीतीश कुमार के स्वास्थ्य और सुशासन पर सवाल खड़ी कर रही हैं. इसके साथ ही मतदाता सूची के विशेष सहन पुनरीक्षण को लेकर लगातार भाजपा सरकार और चुनाव आयोग पर विपक्ष निशाना साध रहा है.
SIR पर बिहार में मचा है बवाल
चुनाव से पहले राज्य में चुनाव आयोग द्वारा कराये गये मतदाता सूची के विशेष सहन पुनरीक्षण (SIR) पर बवाल मचा हुआ है. यह बवाल देश की संसद से बिहार की सड़कों तक है. राहुल गांधी चुनाव आयोग पर SIR को लेकर सवाल कर रहे हैं और भाजपा के साथ मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं. वहीं, तेजस्वी यादव ने आज यहां तक दावा कर दिया कि उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गये हैं. कुल मिलाकर चुनाव से पहले यह सवाल किये जा रहे हैं कि विकास और जाति पर फ्रीबीज और SIR भारी पड़ता दिखाई दे रहा है?
राज्य में SIR पर हुए विवाद में कांग्रेस और राजद ने आरोप लगाया कि दलितों और पिछड़ों के वोट काटने के लिए चुनाव आयोग और बीजेपी की यह साजिश है. चुनाव आयोग के स्पष्टीकरण के बावजूद राज्य SIR पर घमासान जारी है. यह घमासान चुनाव तक और चुनाव के बाद भी रहने की आसार हैं. राहुल गांधी इससे पहले महाराष्ट्र चुनाव में भी वोटों की चोरी करने का आरोप चुनाव आयोग पर लगा चुके हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ओम प्रकाश अश्क कहते हैं कि चुनाव आयोग ने बिहार में चुनाव से पहले जिस तरह से SIR करवाया है और तेजस्वी यादव ने आज यह आरोप लगाया कि मेरा नाम ही वोटर लिस्ट का गायब है. तो चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया पर उनका वोटर लिस्ट में नाम अपलोड कर दिया और बताया कि बूथ बदल गया है. यह विपक्ष के मुंह पर एक तमाचा है. वहीं, चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि यदि किसी का नाम छूट गया है तो वो एक सितंबर तक अपना नाम दर्ज करवाया सकते हैं. चुनाव आयोग ने आपत्ति जताने का मौका दिया है. इससे SIR पर विपक्ष की धार कमजोर होती जा रही है.
चुनाव से पहले फ्रीबीज की बौछार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्हें कभी सुशासन बाबू और अपराध-विरोधी राजनीति का प्रतीक माना जाता था, वह फ्रीबीज के विरोधी माने जाते थे. अब इसे सियासी मजबूरी कहें या फिर चुनाव से पहले की चाल वह मुफ्त बिजली, नकद सहायता और युवाओं को एक करोड़ सरकारी नौकरियों के रूप में रियायतों पर दांव लगा रहे हैं. वह हर वर्ग को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं.
पिछले कुछ दिनों में, जेडी(यू) ने 100 यूनिट मुफ्त बिजली से लेकर महिलाओं और छात्रों के लिए प्रत्यक्ष लाभ और सामाजिक सुरक्षा पेंशन को दोगुना करने तक, कई घोषणाएं की हैं. मुख्यमंत्री के भाषणों में कल्याणकारी शब्दों की गूंज साफ दिखाई दे रही है, जिसमें युवाओं, महिलाओं और पिछड़ी जातियों का विश्वास फिर से जीतने की स्पष्ट इच्छा है.
