सीतामढ़ी के सुप्पी प्रखंड का जमला परसा गांव बागमती नदी के तेज कटाव की चपेट में है। हालात इतने खराब हैं कि ग्रामीण खुद बुलडोजर और जेसीबी मंगाकर अपने घर तोड़ रहे हैं। ताकि ईंट, लकड़ी, दरवाजे और खिड़कियां बचाई जा सकें।
अब तक 50 से ज्यादा घर बह चुके हैं। बची हुई जमीन भी नदी के तेज बहाव के निशाने पर है। गांव की गलियां वीरान हो चुकी हैं, जगह-जगह टूटते मकान और बिखरा मलबा ही नजर आ रहा है।
ग्रामीणों की पीड़ा- “रात में नींद नहीं आती”
श्रीपति देवी ने बताया कि, “पीढ़ियों से बसे घर और खेत बागमती में समा गए। बच्चों के भविष्य की चिंता खाए जा रही है।”
निरंजन पासवान ने बताया कि, “नदी घर के बिल्कुल पास आ गई है। रात में नींद नहीं आती। हर साल कटाव रोकने का वादा होता है, लेकिन कुछ नहीं बदलता।”
बारिश और कटाव की दोहरी मार
नंदकिशोर ने कहा कि, “खाने-पीने का इंतजाम मुश्किल हो गया है। बारिश और कटाव ने जीना मुश्किल कर दिया।” ग्रामीणों का आरोप है कि जल संसाधन विभाग करोड़ों खर्च करने का दावा करता है, लेकिन तेज धारा के सामने पत्थर और बोल्डर टिक नहीं पाते।
गांव का अस्तित्व खतरे में
कई परिवार पहले ही सुरक्षित स्थानों पर जा चुके हैं। बाकी लोग दिन-रात सामान निकालने में लगे हैं। जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। ग्रामीणों को डर है कि जल्द ही जमला परसा सिर्फ नक्शों और सरकारी कागजों में रह जाएगा।
