बहुत जल्द देश के कोने-कोने में आम आदमी को सस्ती दवाइयां मिलने लगेंगी. इसकी वजह सरकार प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्रों (PMBJK) की संख्या को बढ़ाकर 10,000 करने जा रही है. प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र पर जेनरिक दवाओं को बेचा जाता है. इनकी कीमत ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50 से 90 प्रतिशत तक कम होती है.
आधिकारिक बयान में कहा गया है कि सरकार ने प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्रों (पीएमबीजेके) की संख्या मार्च 2024 तक बढ़ाकर 10,000 करने का निर्णय किया है. इन केंद्रों पर सस्ती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण दवाएं मिलती हैं.
हुई 18,000 करोड़ रुपये की बचत
बयान के मुताबिक प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्रों के माध्यम से पिछले आठ वर्षों में करीब 18,000 करोड़ रुपये की बचत की गई है. सरकार ने देशभर के 766 जिलों में से 743 जिलों को शामिल करते हुए 9,000 से अधिक प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र चालू किए हैं.
केंद्र सरकार के रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत आने वाले औषधि विभाग ने नवंबर 2008 में इन केंद्रों की शुरुआत की थी. प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्रों ने दिसंबर 2017 में 3,000 केंद्र खोलने का लक्ष्य हासिल किया था. मार्च 2020 में इन केंद्रों की संख्या बढ़कर 6,000 हो गई. पिछले वित्त वर्ष में ये संख्या 8,610 से बढ़कर अब 9,000 हो गई है.
मिलते हैं चिकित्सा उपकरण भी
आधिकारिक बयान के मुताबिक इन केंद्रों पर 1,759 दवाएं और 280 सर्जरी उपकरण उपलब्ध हैं. सरकार ने मार्च 2024 तक प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्रों की संख्या बढ़ाकर 10,000 करने का लक्ष्य रखा है. जनऔषधि केंद्रों के जरिये वित्त वर्ष 2021-22 में 893.56 करोड़ रुपये मूल्य की दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों की बिक्री की गई थी. इस तरह ब्रांडेड दवाओं की तुलना में देशवासियों के 5,300 करोड़ रुपये बचाने में मदद मिली.
जेनरिक दवाएं गुण और गुणवत्ता के मामले में ब्रांडेड दवाओं की तरह ही होती हैं. बस इनकी कीमत उनकी तुलना में कम होती है, क्योंकि इनकी मैन्यूफैक्चरिंग करने वाली कंपनियां बड़े पैमाने पर ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर पैसा खर्च नहीं करती हैं. इस वजह से उन्हें अपने उत्पाद की कीमत कम रखने में मदद मिलती है और इसका फायदा ग्राहकों को मिलता है. जेनरिक दवाएं बनाने के मामले में भारत दुनिया के सबसे अग्रणी देशों में से एक है.
(भाषा के इनपुट के साथ)