राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य और शिक्षा, जिन्हें कभी समाज सेवा माना जाता था, अब अत्यधिक व्यवसायीकरण का शिकार हो गए हैं और आम लोगों की पहुंच से बाहर हैं. इंदौर में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “अच्छा स्वास्थ्य और शिक्षा बेहद जरूरी हैं और पहले इन्हें ‘सेवा’ माना जाता था, लेकिन अब दोनों आम लोगों की पहुंच से बाहर हैं, दोनों का व्यवसायीकरण हो गया है. ये न तो सस्ते हैं और न ही सुलभ.”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोग अक्सर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा के लिए अपनी बचत और संपत्ति का त्याग कर देते हैं. “स्कूलों और अस्पतालों की संख्या बढ़ रही है, और सुविधाओं में प्रगति हो रही है, लेकिन ये सुविधाएं लोगों के लिए सुलभ नहीं हैं.”
किफायती और सुलभ चिकित्सा पर जोर
भागवत ने किफायती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि अच्छी कैंसर देखभाल केवल 8-10 भारतीय शहरों में ही उपलब्ध है. उन्होंने यह भी कहा कि ‘पश्चिमी मुल्क चिकित्सा के क्षेत्र में अपने एक जैसे मानक दुनिया के अन्य हिस्सों के देशों पर लागू करने की सोच रखते हैं, लेकिन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में मरीजों का उनकी अलग-अलग प्रकृति के आधार पर इलाज किया जाता है.
शनिवार को, महाराष्ट्र के नागपुर दौरे में एक मंदिर दर्शन के दौरान, भागवत ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत वास्तव में “विश्वगुरु” तभी बनेगा जब वह धर्म और अध्यात्म का विकास करेगा.
धर्म और अध्यात्म को लेकर कही थी ये बात
उन्होंने कहा, “अगर हमारा देश 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था भी बन जाता है, तो यह दुनिया के लिए कोई नई बात नहीं होगी, क्योंकि ऐसे कई अन्य देश भी हैं.” उन्होंने आगे कहा, “हालाँकि, दुनिया में हमारे पास जो अध्यात्म और धर्म है, उसका अभाव है. दुनिया इसके लिए हमारे पास आती है. जब हम इसमें (धर्म और अध्यात्म में) बड़े हो जाते हैं, तो दुनिया हमारे सामने झुकती है और हमें विश्वगुरु मानती है.”
उन्होंने आगे कहा, “हमें भगवान शिव की तरह बनना चाहिए, जो वीर हैं और सभी को समान रूप से देखते हैं… वे थोड़े में ही खुश हो जाते हैं और दुनिया की समस्याओं का समाधान करते हैं.” आरएसएस प्रमुख ने कहा कि धर्म सत्य और एक पवित्र कर्तव्य है, और जिम्मेदारी के साथ इसका पालन करने से समाज में शांति बनाए रखने में मदद मिलती है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह सुनिश्चित करना समाज की जिम्मेदारी है कि लोग धर्म के मार्ग से न भटकें.
