सीतामढ़ी. जिला के सुरसंड में एक ऐसा मंदिर है जो अपने अंदर कई अबूझ रहस्य समेटे हुए है. इस मंदिर का निर्माण 400 साल पहले यहां की तत्कालीन रानी राजवंशी कुंवर ने कराया था. इसलिए इस मंदिर को रानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि मंदिर निर्माण के बाद रानी ने उन चार मजदूरों के हाथ कटवा दिए थे, जिन्होंने यह मंदिर बनाया था. रानी नहीं चाहती थीं कि ये मजदूर किसी दूसरी जगह पर जाकर इस तरह का मंदिर बनाए. मजदूर के समर्पण को जीवंत रखने के लिए मंदिर के पीछे की दीवार पर उन चारों मजदूरों की प्रतिमा भी बनवाई थी, जो अब भी मौजूद है. यहां के लोगों का कहना है की रात में मंदिर के अंदर से पायल की आवाज आती रहती है, जो रानी साहिबा की ही है. लोगों का मानना है कि आज भी रानी राजवंशी कुंवर मंदिर की देखरेख करती हैं
मंदिर के पुजारी किशुन दास ने बताया कि मंदिर की ईंट वाली दीवार के गुंबद की नक्काशी उत्कृष्ट कलाकृति का बेहतरीन उदहारण है. रात में निकलने वाली पायल की झंकार दो किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ती है. लोगों की मानें तो यह आवाज रानी राजवंशी कुंवर की है. मंदिर निर्माण के बाद निर्माता रानी राजवंशी कुंवर ने चार मजदूरों के हाथ कटवाए. करीब डेढ़ एकड़ भूमि में निर्मित इस मंदिर की कुछ चीजें ताजमहल से मिलती-जुलती हैं. गुफा, रात के अंधेरे में निकली रोशनी के बीच गूंजती पायल की झंकार, तहखाना, सीढ़ी, कबूतर, विषैले सर्प रहस्य के घेरे में हैं. पहले इस मंदिर को रानी स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता था. परंतू मंदिर के स्वर्ण मुकुट समेत धातुओं की या तो चोरी हो गई या फिर दबंगों के कब्जे में है. अब इस मंदिर को रानी मंदिर के नाम से ही जाना जाता है.
विरासत सहेजने की कोशिश नहीं
मंदिर के पुजारी किशुन दास ने बताया कि मंदिर की अकूत सम्पत्ति की चर्चा सब की जुबान पर है. यह सभी जानते हैं कि मंदिर की गुफाओं में अपार सम्पत्ति है. बावजूद इस मंदिर कर देखरेख और रख-रखाव की कोई चिंता नहीं है. बहरहाल, मंदिर का जीर्णोद्धार व इसके रहस्यों से पर्दा हटाने की दरकार है, ताकि पर्यटकों का ध्यान खींचा जा सके. इस ऐतिहासिक मंदिर की हालत इन दिनों काफी खराब चल रही है. सरकार इस पर ध्यान दे, तो इस ऐतिहासिक मंदिर को पर्यटन के मानचित्र पर स्थापित किया जा सकता है. वर्तमान में गांव के लोग चंदा इकट्ठा कर देख-रेख करते हैं.