रक्षाबन्धन का त्योहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र की दुआ करती हैं और भाई भी अपनी बहनों को सदा रक्षा करने का वचन देते हैं। यह रक्षाबंधन का त्योहार शुरु कब से हुआ इस विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। इतिहास बताता है कि चित्तौड़ की रानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल शासक हुमांयु को राखी भेजकर अपना भाई बनाया और इसी राखी की इज्जत के कारण हुमांयु ने गुजरात के राजा से युद्ध कर कर्मवती की रक्षा की। इसके अलावा हमारी धार्मिक पुस्तकों में रक्षाबंधन मनाने की कुछ मान्यताओं का जिक्र है।
महाभारत में इस त्यौहार की मान्यता का वर्णन है। द्रौपदी ने एक बार त्रेता युग में भगवान श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग जाने पर अपनी साड़ी से टुकड़ा फाड़ कर चीर बांधी थी। उसी चीर बांधने के कारण कृष्ण ने चीर हरण के समय द्रौपदी की रक्षा की। इसलिए रक्षाबंधन का त्यौहार बनाया जाता है।
विष्णु पुराण की मान्यता
पुराणों में इस त्यौहार का जिक्र उस समय हुआ है जब देवासुर संग्राम हुआ था। विष्णु पुराण में इसका वर्णन अध्याय नवम में किया गया है। पुराण में लिखा है कि देवाताओं और असुरों का संग्राम 12 वर्षों तक चला था। इस संग्राम में देवताओं की हार हुई और असुरों की जीत हुई। असुरों ने देवताओं के राजा इंद्र को हराकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया। देवता परास्त होकर जब बह्मा जी के पास पहुंचे तो उन्होने कहा देवता गण आप दुष्टों का संहार करने वाले भगवान विष्णु के पास जाओ वे ही संसार की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के कारण हैं। वहां जाने से तुम्हारा कल्याण होगा।
तब सारे देवगणों के साथ लोक पितामह श्री बह्मा जी स्वयं क्षीर सागर के तट पर गए। वहां पहुंच कर भगवान विष्णु की स्तुति की। इसके बाद भगवान प्रकट हो बोले मै तुम्हारा बल फिर बढ़ाऊंगा। इसके बाद देवताओं ने अपने गुरु बृहस्पति से विचार विमर्श किया और रक्षा विधान को कहा। तब सावन की पूर्णिमा को प्रात: काल रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।
येन बद्धोबली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल! मा चल:।।
इन मंत्र से गुरू ने सावन की पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान किया। इंद्राणी ने इंद्र के दायें हाथ में रक्षा सूत्र को बांध दिया। इसी सूत्र के बल पर इंद्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।