तेजस्वी यादव की अगुवाई में आरजेडी की यह पहली सूची सिर्फ उम्मीदवारों की घोषणा नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में एक नया संदेश देने की कोशिश प्रतीत हो रही है. पार्टी ने इसमें अपने पारंपरिक यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण को कायम रखते हुए युवाओं, महिलाओं और लोकप्रिय चेहरों को भी स्थान देकर सामाजिक संतुलन साधने की रणनीति अपनाई है. राघोपुर से तेजस्वी यादव के फिर से मैदान में उतरने ने पार्टी की जड़ों को मजबूती दी है, वहीं खेसारी लाल यादव जैसे चर्चित चेहरे को टिकट देकर आरजेडी ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वह अब सिर्फ जातीय राजनीति नहीं, बल्कि जन-भावनाओं और स्टार फेस की अपील के सहारे भी मतदाताओं तक पहुंचना चाहती है.आरजेडी ने जातिगत संतुलन और स्टार अपील से एक साहसिक दांव चला है जो बिहार की पिछड़ी राजनीति को साधने का प्रयास है. लेकिन गठबंधन की कमजोरी और विवादास्पद चेहरों ने इसे जोखिम भरा बना दिया है.
तेजस्वी यादव का भरोसेमंद दांव
वैशाली जिले के राघोपुर विधानसभा क्षेत्र से तेजस्वी यादव के दोबारा मैदान में उतरने की पूरी संभावना थी और वही हुआ. वह एक दिन पहले ही नामांकन भी कर चुके थे, लेकिन राजद की लिस्ट में उनका नाम आना एक खास प्लान का हिस्सा कहा जा रहा है. जानकारों की नजर में यह निर्णय पार्टी के लिए प्रतीकात्मक और रणनीतिक दोनों है. लिस्ट में नाम जोड़कर यह साबित करने की पूरी कोशिश है कि यह सीट आरजेडी की राजनीतिक परंपरा का केंद्र रही है. एक बार फिर से तेजस्वी का यहां से उतरना इस संदेश को और स्पष्ट करता है कि वे अब भी यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण के साथ-साथ परंपरागत आधार को एकजुट रखने में भरोसा रखते हैं. यह कदम उनके नेतृत्व को स्थिरता और निरंतरता देने का संकेत भी देता है.
खेसारी लाल यादव को टिकट के मायने
सूची में सबसे बड़ा और अप्रत्याशित नाम भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव का है, जिन्हें छपरा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है. आरजेडी का यह कदम एक साथ कई संकेत देता है. पहला, पार्टी युवाओं और मनोरंजन जगत की लोकप्रिय हस्तियों को शामिल कर चुनावी जमीन को विस्तारित करना चाहती है. दूसरा, खेसारी यादव जैसे बड़े चेहरे को टिकट देकर आरजेडी ने भाजपा के स्टार पावर के मुकाबले अपनी स्टार अपील को बढ़ाने की कोशिश की है. तीसरा, छपरा जैसी रणनीतिक सीट पर यह फैसला पार्टी की उस कोशिश को बता रहा है जिसमें वह पारंपरिक जातिगत सीमाओं से आगे बढ़कर भावनात्मक और लोकप्रिय अपील के जरिए नए मतदाताओं को साधना चाहती है.
पुराने चेहरों को बनाए रखकर स्थिरता का संदेश
सूची में भाई वीरेंद्र (मनेर), भोला यादव (बहादुरपुर), प्रो. चंद्रशेखर (मधेपुरा), अवध बिहारी चौधरी (सीवान), अख्तरुल इस्लाम शाहीन (समस्तीपुर) जैसे नाम पार्टी की स्थिरता और संगठनात्मक अनुभव को बताते हैं. तेजस्वी यादव ने यह स्पष्ट किया है कि पार्टी केवल नए चेहरों पर निर्भर नहीं है; बल्कि पुराने नेताओं के अनुभव को भी सम्मान देती है. जाहिर है यह राजद की आंतरिक एकजुटता का संकेत है और पार्टी नेताओं को सीधा संदेश भी है.
सामाजिक समीकरणों का संतुलन
बता दें कि आरजेडी की पहचान हमेशा सामाजिक न्याय की राजनीति से रही है. इस सूची में यादव, पासवान, कुशवाहा, मुसलमान, सवर्ण और दलित समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की गई है. यादव समुदाय से कई प्रत्याशी तेजस्वी यादव, मुन्ना यादव, प्रेम शंकर यादव, भाई वीरेंद्र जैसे नाम हैं जो पारंपरिक वोट बैंक को सहेजते हैं. दूसरी ओर, मुस्लिम चेहरों में मोहम्मद शाहनवाज (जोकीहाट), युसुफ सलाहउद्दीन (सिमरी बख्तियारपुर), मो. नेहालुद्दीन (रफीगंज) शामिल हैं जो मुस्लिम वोट को आकर्षित करने का प्रयास हैं. दलित और महादलित वर्ग से रामवृक्ष सदा (अलौली), चंद्रहास चौपाल (सिंहेश्वर) जैसे उम्मीदवार शामिल हैं, जिससे सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांत को जीवित रखने की कोशिश की गई है.
ये दो बड़ी चूक महागठबंधन के लिए खतरा!
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. आरजेडी की इस सूची में कई चूकें साफ नजर आ रही हैं जो पार्टी की कमजोरियां उजागर करती हैं. सबसे बड़ा खतरा है महागठबंधन की आंतरिक कलह. कांग्रेस और आरजेडी ने विलंब से लिस्ट जारी की जिससे वैशाली, लालगंज जैसी 7 सीटों पर कांग्रेस और आरजेडी के उम्मीदवार आमने-सामने आ गए. दूसरी चूक है विवादास्पद चेहरों का चयन. ओसामा शहाब का टिकट मुस्लिम वोट तो साध सकता है, लेकिन भाजपा इसे ‘शहाबुद्दीन का वारिस’ और ‘जंगलराज का प्रतीक’ बताकर सियासी हमले करेगी. इसी तरह, खेसारी लाल का सेलिब्रिटी स्टेटस ग्रामीण वोटरों को लुभा सकता है, लेकिन शहरी-मध्यम वर्ग में ‘गंभीरता की कमी’ का आरोप लगेगा.
ईबीसी-महिलाओं को सीमित अवसर-कमजोर पहलू
आरजेडी ने अपने उम्मीदवारों में ईबीसी समाज पर कम फोकस किया, जबकि जदयू ने अपनी लिस्ट में 57 नामों में इन्हें प्राथमिकता दी. इसके अतिरिक्त सूची में कुछ महिला उम्मीदवार जैसे अनीता (नोखा), माला पुष्पम (हसनपुर), चांदनी सिंह (बनियापुर), रेखा पासवान (मसौढ़ी) जरूर हैं, लेकिन कुल अनुपात के लिहाज से यह संख्या बहुत कम है. बिहार की आधी आबादी को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिहाज से आरजेडी ने यह मौका कुछ हद तक गंवाया है. यह विपक्षी दलों के लिए आलोचना का बिंदु बन सकता है.
नई पीढ़ी और ग्राउंड लेवल नेताओं को मौका
हालांकि, सूची में कई नए और अपेक्षाकृत युवा चेहरे शामिल हैं. राहुल तिवारी (शाहपुर), रणविजय साहू (मोरवा), आलोक मेहता (उजियारपुर) जैसे युवा चेहरों से संकेत मिलता है कि पार्टी संगठन को युवा दिशा देना चाहती है. बता दें कि तेजस्वी यादव स्वयं नई पीढ़ी का नेतृत्व करते हैं और इस चुनाव को ‘नई सोच, नया बिहार’ की अवधारणा पर केंद्रित करना चाहते हैं.
राजनीतिक संदेश-‘परंपरा से परिवर्तन तक’
इस सूची के जरिए आरजेडी ने यह राजनीतिक संदेश दिया है कि वह केवल जातीय समीकरणों पर नहीं, बल्कि लोकप्रियता, युवाशक्ति और सामाजिक विविधता के संगम पर दांव लगा रही है. यह रणनीति बताती है कि पार्टी अब पुराने ‘MY समीकरण’ से आगे बढ़कर व्यापक गठजोड़ की दिशा में सोच रही है.
‘विरासत की राजनीति’ से आगे की चुनौतियां
फिर भी, आरजेडी के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं. खेसारी लाल यादव जैसे चेहरे पार्टी के लिए ऊर्जा लाएंगे, परंतु उनका राजनीतिक अनुभव सीमित है. पुराने नेताओं और नए चेहरों के बीच तालमेल बनाना संगठनात्मक स्तर पर कठिन हो सकता है. महिला प्रतिनिधित्व की कमी और कुछ सीटों पर जातीय समीकरणों के अति-निर्भरता से स्थानीय असंतोष भी पनप सकता है. हालांकि, कुल मिलाकर आरजेडी की पहली सूची को एक संतुलित और संदेशपूर्ण शुरुआत कहा जा सकता है. तेजस्वी यादव ने सामाजिक न्याय की परंपरा को बनाए रखते हुए युवाओं और लोकप्रिय चेहरों के सहारे नई ऊर्जा जोड़ने की कोशिश की है. यह सूची न केवल उम्मीदवारों की घोषणा है, बल्कि एक राजनीतिक घोषणापत्र भी है, जिसमें आरजेडी यह दिखाना चाहती है कि वह अब ‘विरासत की राजनीति’ से आगे बढ़कर ‘विकास और प्रतिनिधित्व की राजनीति’ की ओर बढ़ रही है.
