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दरभंगा

बिहार से खाली हाथ चले थे वेदांता के अनिल अग्रवाल, कबाड़ बेच बने कारोबारी, खड़ा किया अरबों का साम्राज्य

Saroj Raja
Last updated: 2022/03/09 at 2:37 AM
Saroj Raja
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5 Min Read
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जब भी हम किसी बड़े उद्योगपति की खबर पढ़ते हैं, तो उसकी नेटवर्थ, लक्जरी गाड़ियों, महंगे शौक और रहन-सहन के बारे में जानना चाहते हैं। लेकिन कई लोग अपनी किस्मत खुद लिखते हैं और दुनिया के लिए आदर्श बन जाते हैं। उन्हीं में से एक हैं वेदांता ग्रुप के मालिक अनिल अग्रवाल। लेकिन क्या आपको पता है कि जब वो अपने सपनों को पूरा करने के लिए बिहार से चले थे, तो एकदम खाली हाथ थे। उनके पास सिर्फ एक टिफिन बॉक्स और बिस्तर बंद था। लेकिन आज वो जिस मुकाम पर पहुंचे है, वो अपने आप में ही किसी बड़े उपलब्धि से कम नहीं है।

कर्म और दृढ़ संकल्प से सब कुछ जीता जा सकता है। एक ऐसा ही उदहारण है देश के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में से एक वेदांत समूह के मालिक अनिल अग्रवाल की, जिन्होंने बिहार के छोटे से जगह से निकल कर व्यापार जगत में एक अलग मुकाम हासिल किया। अनिल अग्रवाल का जन्म 24 जनवरी 1954 को पटना, बिहार में निम्न-मध्यम वर्गीय मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम द्वारका प्रसाद अग्रवाल था, जिनका एल्युमीनियम कंडक्टर का छोटा सा व्यवसाय था।

अपने पिता के एल्युमीनियम कंडक्टरों का व्यवसाय करने के बाद, वर्ष 1976 में एल्युमीनियम, तांबा, जस्ता और लोहे के क्षेत्र में अपना वर्चस्व जमाने के लिए एक स्क्रैप डीलर के रूप में वो मुंबई आ गए। उन्होंने 15 वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ दिया था और उम्र 20 होने तक वो माया नगरी मुंबई पहुंच गए थे।

स्टरलाइट की स्थापना

1970 के दशक में अनिल अग्रवाल ने  कबाड़ की धातुओं की ट्रेडिंग शुरू की, उन्होंने दूसरे राज्यों की केबल कंपनियों से स्क्रैप मेटल इकट्ठा करना शुरू किया और उसे मुंबई में बेचना शुरू किया। 1980 के दशक में उन्होंने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज की स्थापना कर ली। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि स्टरलाइट इंडस्ट्रीज 1990 के दशक में कॉपर को रिफाइन करने वाली देश की पहली प्राइवेट कंपनी बनी थी। स्टरलाइट इंडस्ट्रीज ने वर्ष 1995 में मद्रास एल्युमिनियम का अधिग्रहण किया। वर्ष 2001 में, अनिल अग्रवाल ने सरकारी HZL (हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड) में 65% हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारत एल्युमिनियम कंपनी (बाल्को) में 51% हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया। यही स्टरलाइट इंडस्ट्री आगे चलकर वेदांता रिसोर्सेज और फिर वेदांता ग्रुप बन गई।

रणनीतिक निर्णय लेने में माहिर हैं अग्रवाल

मौजूदा समय में अनिल अग्रवाल एक बहुत बड़े बिजनेस टाइकून हैं। उन्होंने खनन संपत्तियों के निजीकरण जैसे कुछ महत्वपूर्ण कार्यों में भी भारत सरकार की सहायता भी की है। ध्यान देने वाली बात है कि वेदांता ग्रुप आज के समय देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी खनन कंपनियों में से एक है. ये लौह अयस्क, एल्युमीनियम के साथ-साथ कच्चे तेल के उत्पादन में भी काम करती है।

हाल ही में अनिल अग्रवाल ने अपने व्यापारिक जीवन को लेकर एक ट्वीटर थ्रेड साझा किया, जिसमें उन्होंने लिखा है कि “करोड़ो लोग अपनी किस्मत आजमाने मुंबई आते हैं, मैं भी उन्हीं में से एक था। मुझे याद है कि जिस दिन मैंने बिहार छोड़ा, मेरे हाथ में सिर्फ एक टिफिन बॉक्स और बिस्तर बंद था और आंखों में सपने संजोकर मैं विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पहुंचा और पहली बार कई चीजों को देखा।” उनका यह ट्वीट उनकी जीवन के संघर्ष को दिखाता है।

रणनीतिक निर्णय लेने में अनिल अग्रवाल माहिर हैं। उनके पास उच्च नेतृत्व कौशल है और उन्होंने वास्तव में इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर उसे साबित भी किया है। उन्होंने एक दशक के भीतर 32 हजार स्टाफ के साथ कंपनी के रेवेन्यू को $1 बिलियन से $13 बिलियन तक पहुंचाया है। उनका जीवन हर कदम पर छोटी और बड़ी उपलब्धियों से भरा हुआ है। यह उनकी छिपी हुई उद्यमशीलता की प्रतिभा ही थी, जिसने उन्हें उद्योग में एक सफल और प्रमुख बिजनेस टाइकून बना दिया। उनका नेतृत्व और कौशल कुशल है और उनके व्यवसायिक रणनीतिक निर्णय सराहनीय हैं। उन्हें तीन मुख्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें द इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा वर्ष 2012 “बिजनेस लीडर अवार्ड।” माइनिंग जर्नल द्वारा “लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड”। अर्न्स्ट एंड यंग द्वारा “वर्ष का उद्यमी” पुरस्कार (2008) शामिल है।

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