बिहार विधानसभा का चुनाव दो चरण में है, 6 नवंबर को पहले फ़ेज़ की 121 सीटों और 11 नवंबर को दूसरे चरण की 122 सीटों पर वोटिंग है. इस बार के चुनाव की दशा और दिशा युवा मतदाता तय करेंगे, जिसके चलते पूरी सियासत युवाओं के इर्द-गिर्द सिमटती जा रही है. इस बार सभी की निगाहें इस बात पर लगी हैं कि युवा मतदाता, खासकर Gen-Z, बिहार चुनाव में कहां खड़ा है?
इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव काफ़ी अलग तरीक़े से लड़ा जा रहा है, क्योंकि राज्य की 58 फ़ीसदी आबादी की आयु 25 साल से कम है. इस बार राज्य में 25 फ़ीसदी के क़रीब मतदाता Gen-Z है, जिसमें 14.7 लाख मतदाता पहली बार वोटिंग करेंगे.
बिहार में देश के युवाओं का अनुपात सबसे ज़्यादा है। इसीलिए चुनाव में सभी दलों की नज़र Gen-Z वोटरों पर है, जिन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए तमाम तरह के वादे किए गए हैं. जन सुराज के प्रशांत किशोर से लेकर महागठबंधन के तेजस्वी यादव और चिराग पासवान सहित एनडीए के नेता युवाओं को लुभाने की कवायद कर रहे हैं.
बिहार में Gen-Z वोटर कितने अहम
साल 1997 से 2012 के बीच जन्म लेने वाले युवाओं को Gen-Z के नाम से जाना जाता है. बिहार में कुल वोटर 7.41 करोड़ हैं. इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 3 करोड़ 92 लाख 7 हज़ार 804 है तो महिला मतदाताओं की संख्या 3 करोड़ 49 लाख 82 हज़ार 828 है.
1997 के बाद जन्म लेने वाले वोटर यानि Gen-Z की संख्या 1.75 करोड़ है. यह संख्या इतनी बड़ी है कि यह युवा वर्ग किसी भी गठबंधन की हार और जीत का अंतर तय करने की क्षमता रखता है, जिसके लिहाज से हर सीट पर औसतन 70 हजार वोटर युवा हैं. बिहार के कुल मतदाताओं का 24 फ़ीसदी Gen-Z वोटर हैं, जो किसी भी आंदोलन को हवा देने और किसी दल की सरकार बनाने की ताक़त रखते हैं.
इंटरनेट के दौर में जन्मे युवा वोटर
1997 से 2012 के बीच जन्म लेने वाले युवाओं को जेनरेशन जेड की श्रेणी में गिना जाता है. जन्म के साथ ही Gen-Z ने कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को अपनी आंखों से देखा है. मोबाइल पर गेम खेलने और कार्टून मूवी देखने से अपना जीवन शुरू करने वाले ये युवा इंटरनेट का यूज कर देश-दुनिया की व्यवस्था और सुख-सुविधाओं को देख चुके हैं.
Gen-Z बड़े होने के साथ वे ऑनलाइन की दुनिया में प्रवेश किए और अपने जीवन का भला-बुरा समझने लगे, दुनिया से अपने देश और प्रदेश की व्यवस्था की तुलना भी कर रहे हैं. सीएम नीतीश कुमार जब भाषण देते हैं कि 20 साल पहले की सरकार कैसी थी या उस समय राज्य की क्या दशा थी, बिहार किस दलदल से निकल कर कहां तक पहुंच गया है, ये उन्हें याद भी नहीं होगा.
नीतीश कुमार की जब से सरकार बनी है, उसके बाद जन्म लेने वाले वोटर भी अच्छे-ख़ासे हैं, जिन्होंने सिर्फ नीतीश कुमार का राज देखा है, उन्होंने लालू यादव या फिर कांग्रेस की रही सरकारों को नहीं देखा. हालांकि, विपक्षी दल लालू सरकार की याद दिलाते रहे हैं.
युवा वोटर राजनीति को समझने का अलग तरीक़ा रखते हैं, ये उनके वोटिंग पैटर्न में भी दिखता है. युवा वोटरों के पास सवालों की लंबी फेहरिस्त है और वो किसी पुरानी स्टाइल की राजनीति के साथ खड़े नहीं रहना चाहते. इसीलिए बिहार के विधानसभा चुनाव में सियासी दल उनकी सियासी नब्ज़ को समझते हुए अपना चुनावी एजेंडा सेट कर रहे हैं ताकि उनका विश्वास जीत सकें.
किसके साथ जाएंगे युवा वोटर
बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यही है कि ये युवा किस नेता या विचार को अपनी पहली पसंद बनाएंगे. क्या युवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय नेतृत्व और विकास के विज़न पर भरोसा करेंगे? या फिर प्रशांत किशोर (पीके) की साफ़-सुथरी राजनीति और ‘जन सुराज’ के बदलाव की बात को चुनेंगे? या फिर तेजस्वी यादव की युवा केंद्रित राजनीति पर भरोसा जताएंगे?
लोकनीति-सीएसडीएस के मुताबिक, 2020 के चुनाव में 21 फ़ीसदी मतदाताओं ने बेरोज़गारी, नौकरियों, भर्ती और उद्योगों की कमी को अपने मतदान निर्णय को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों के रूप में रखा था. इसीलिए रोज़गार और पलायन के मुद्दे पर सियासी नैरेटिव सेट करने का दांव चला जा रहा है.
एनडीए की यूथ पॉलिसी
बिहार में बेरोज़गारी कम करने के उद्देश्य से पिछले कुछ वर्षों में कई योजनाएं शुरू की गई हैं. इस बार बिहार विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले नीतीश कुमार ने स्नातकों और बारहवीं पास करने के बाद भी बेरोज़गार लोगों को दो साल तक 1,000 रुपये प्रतिमाह देने की घोषणा की। इसके अलावा नीतीश कुमार ने एक करोड़ नौकरी देने का वादा किया है।
पीएम मोदी पहली बार वोट करने वाले युवाओं का विश्वास जीतने में सबसे आगे रहते हैं. उनकी छवि एक मज़बूत, निर्णायक और वैश्विक नेता की हैय युवा मतदाता राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और देश के विकास के बड़े विज़न से प्रभावित होते हैं. ‘मुद्रा योजना’, ‘डिजिटल इंडिया’ और सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुं.चने की प्रक्रिया ने युवाओं को साधा है. इसके अलावा एनडीए के सहयोगी चिराग पासवान ‘बिहार फर्स्ट’ का ऐलान कर युवाओं को लुभाने में जुटे हुए हैं.
तेजस्वी यादव का युवाओं से वादा
आरजेडी नेता और महागठबंधन के सीएम चेहरा तेजस्वी यादव युवाओं को लुभाने के लिए अपना लुक तक चेंज कर चुके हैं. कुर्ता-पायजामा की जगह आजकल तेजस्वी टी-शर्ट पहने नज़र आते हैं, चाहे प्रेस कॉन्फ़्रेंस हो या फिर चुनावी जनसभा. इसके अलावा उन्होंने वादा किया है कि अगर महागठबंधन सत्ता में आया, तो वह राज्य के हर परिवार को एक सरकारी नौकरी सुनिश्चित करेगाय.
तेजस्वी यादव युवाओं के लिए शिक्षा से लेकर तमाम वादे कर रहे हैं. उन्होंने मेडिकल कॉलेज और हर ज़िले में एक इंजीनियरिंग, पैरामेडिकल और पॉलिटेक्निक कॉलेज खोलने की घोषणा कर रखी है. वह पलायन और रोज़गार का मुद्दा सेट करने में जुटे हैं, जिसे लेकर कांग्रेस ने बिहार में बाक़ायदा यात्रा निकाली थी.
पीके दिखा रहे युवाओं को सपना
चुनावी रणनीतिकार से सियासी पिच पर उतरे प्रशांत किशोर बिहार की सियासत को एक नई दिशा देने में जुटे हैं. पीके अपनी जन सुराज पार्टी को एनडीए और महागठबंधन के विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं, जिसके लिए वो बिहार में भ्रष्टाचार, लचर व्यवस्था, कॉलेज सेशन में देरी और नौकरी की कमी जैसे मुद्दों पर नीतीश को घेरने में जुटे हुए हैं.
पीके युवाओं में बदलाव और रोज़गार की नई उम्मीदें जगाकर Gen-Z वोटर्स का दिल जीतना चाहते हैं, लेकिन सवाल यही है कि क्या बिहार के युवा पीके के साथ मजबूती से खड़े हो सकेंगे. यह सवाल इसीलिए भी है कि पीके पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं, लेकिन उनके पास न ही बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी की तरह से संगठन मजबूत है और न ही सियासी समीकरण को फिट बैठते हैं?

