बिहार में अक्टूबर-नवंबर तक विधानसभा चुनाव होने हैं. सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन की सीधी फाइट को चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) की पार्टी जन सुराज भी पूरी ताकत झोंक रही है. पीके पहले ही यह साफ कह चुके हैं कि उनकी पार्टी किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेगी, सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. अब चुनाव का समय करीब आ रहा है, ऐसे में चर्चा इस बात को लेकर भी हो रही है कि क्या पीके खुद भी चुनाव मैदान में उतरेंगे?
चुनाव लड़ने पर पीके का रुख क्या
प्रशांत किशोर चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने हैं और उनकी भूमिका चुनाव लड़ाने की रही है. जन सुराज पार्टी के साथ बिहार की चुनावी रणभूमि में उतरने के बाद अब उन पर चुनाव लड़वाने की जिम्मेदारी है ही, अग्रिम मोर्चे से नेतृत्व करने की चुनौती भी होगी. जन सुराज पार्टी का सूत्रधार होने के नाते चुनाव अभियान की धुरी भी वही होंगे.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पीके खुद भी चुनावी रणभूमि में उतरेंगे या चुनाव लड़ाने की भूमिका में ही रहेंगे? खुद के चुनाव लड़ने पर पीके के रुख की बात करें तो मार्च महीने में उन्होंने कहा था कि पार्टी ने फैसला किया तो राघोपुर सीट से चुनाव लड़ूंगा. राघोपुर बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का निर्वाचन क्षेत्र है.
पीके के राघोपुर से लड़ने वाली बात का इस्तेमाल महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने जन सुराज को बीजेपी की बी टीम बताने के अपने नैरेटिव को मजबूत करने में शुरू कर दिया. पीके ने बाद में यह भी कहा कि तेजस्वी तो क्या, मोदी के खिलाफ भी चुनाव लड़ने को तैयार हूं. चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की इन बातों के पीछे भी खास रणनीति को वजह माना जाता है.
पीके अपनाएंगे डेब्यू का केजरीवाल मॉडल?
राघोपुर विधानसभा सीट लालू यादव के परिवार की सीट मानी जाती है. तेजस्वी यादव 2015 से बिहार विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. तेजस्वी के पहले लालू यादव और रबड़ी देवी भी राघोपुर सीट से विधायक रहे हैं. लालू परिवार के गढ़ में उतरने की बात प्रशांत किशोर ने कही थी, तो उसे चुनावी डेब्यू के केजरीवाल मॉडल के रूप में भी देखा जा रहा है.
अरविंद केजरीवाल जब आम आदमी पार्टी को लेकर दिल्ली के चुनावी रण में उतरे, तो खुद के लिए तब सत्ताधारी दल का सबसे बड़ा चेहरा तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सीट नई दिल्ली को चुना. केजरीवाल ने 2014 के आम चुनाव में भी इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल किया और एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी सीट से चुनाव मैदान में उतर आए.
प्रशांत किशोर अगर तेजस्वी यादव के खिलाफ राघोपुर सीट से उतरते हैं, तो इसके पीछे भी बड़े चेहरे के खिलाफ उतरने का यही फॉर्मूला वजह हो सकता है. दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधान परिषद सदस्य हैं. नीतीश विधानसभा चुनाव में नहीं उतरते. ऐसे में प्रशांत किशोर ने विधानसभा में विपक्ष के नेता और महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार तेजस्वी यादव की सीट चुनी.
बक्सर सीट से उतरने के भी कयास
प्रशांत किशोर के लिए संभावित सीटों की लिस्ट में कयास बक्सर सीट को लेकर भी लगाए जा रहे हैं. बक्सर से ही प्रशांत किशोर ने 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई की है और यहां उनका अपना घर भी है. रोहतास जिले के कोनार गांव में जन्में प्रशांत किशोर के लिए बक्सर सीट का जातीय समीकरण भी मुफीद बताया जा रहा है. बक्सर विधानसभा सीट भी राघोपुर की ही तरह 2020 के बिहार चुनाव में महागठबंधन ने ही जीती थी. इस सीट से तब कांग्रेस के मुन्ना तिवारी विजयी रहे थे, जो सामान्य वर्ग से ही आते हैं.
बिहार चुनाव के लिए जन सुराज की रणनीति क्या
बिहार चुनाव के लिए प्रशांत किशोर की रणनीति जनता के बीच जन सुराज को एनडीए और महागठबंधन के विकल्प के रूप में लेकर जाने की है. जन सुराज शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन और रोजगार जैसे मुद्दे उठा रही है और इनके समाधान के लिए अपना विजन भी बता रही है. फोकस इस बात पर भी है कि स्वच्छ छवि वाले नए और लोकप्रिय चेहरों को जन सुराज से जोड़ा जाए, चुनाव मैदान में उतारा जाए. खुद प्रशांत किशोर यह ऐलान कर चुके हैं कि बिहार चुनाव में जन सुराज 90 फीसदी टिकट ऐसे चेहरों को देगी, जो कभी चुनाव नहीं लड़े हैं.
