बिहार में निकाय चुनाव को लेकर एकबार फिर पेंच फंसता दिख रहा है. निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर मामला पटना हाईकोर्ट में है. मामले में बुधवार और गुरुवार को सुनवाई हुई है. इसपर फैसला चार 4 अक्टूबर को सुनाया जाएगा. इसके बाद तय होगा कि चुनाव पर रोक लगेगी या फिर तय कार्यक्रम के मुताबिक ही वोटिंग होगा, पटना हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इस मामले में सुनवाई हुई.
इसके बाद राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता ललित किशोर के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने अपना पक्ष रखा.
बिहार सरकार का फैसला पूरी तरह गलत ‘
कोर्ट में बिहार सरकार की तरफ से उनके वकील ने कहा कि चुनाव कराने का फैसला सही है. इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बिहार सरकार का फैसला पूरी तरह गलत है. नीतीश सरकार ने नगर निकाय चुनाव में आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से अनदेखी की है. याचिकाकर्ता के वकील रवि रंजन ने कोर्ट के सामने दलील दी कि संविधान में राजनीतिक पिछड़ेपन पर चुनाव में आरक्षण की परिकल्पना की गई है. यह सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर दिए गए आरक्षण से अलग है.
4 अक्टूबर को फैसला सुनाया जायेगा
उन्होंने कहा कि राजनीतिक आरक्षण को लागू करने के लिए, राजनीतिक पिछड़ेपन के पहले अनुभवजन्य डेटा को एक समर्पित प्राधिकरण द्वारा एकत्र किया जाना चाहिए और समय-समय पर साझा और समीक्षा की जानी चाहिए. पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल की बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. मामले में 4 अक्टूबर को फैसला सुनाया जायेगा.
क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का नियम
सुप्रीम कोर्ट ने निकाय चुनाव को लेकर जो फैसला दिया है उसके मुताबिक पिछडे वर्ग को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार पहले एक विशेष आय़ोग का गठन करे.फिर आयोग इसका अध्ययन करे कि कौन सा वर्ग वाकई पिछड़ा है. इसके बाद आयोग कि रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण दिया जाये. इसके साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक राज्य सरकारें इस शर्त को पुरा नहीं करती तब तक पिछड़े वर्ग के लिए रिजर्व सीट को सामान्य ही माना जाए