बिहार विधानसभा अध्यक्ष के साथ हुई बदसलूकी का मामला सियासी तौर पर तूल पकड़ने लगा है. बीजेपी और जेडीयू के बीच तकरार बढ़ती जा रही है और अब दोनों आर-पार के मूड में दिख रही हैं. विधानसभा में गुस्से में तमतमाए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पीकर को संविधान देखने की नसीहत तक दे डाली, जिसके बाद विजय सिन्हा मंगलवार को सदन में नहीं पहुंचे. ऐसे में सवाल उठता है कि साढ़े चार साल के बाद क्या फिर जेडीयू और बीजेपी की दोस्ती में दरार आएगा?
बिहार के लखीसराय के पुलिस उपाधीक्षक व थाना प्रभारी के खिलाफ जांच को लेकर जेडीयू और बीजेपी के बीच तलवार खिंच गई है. बिहार की राजनीति में बीजेपी और जेडीयू के बीच यह नाक की लड़ाई बन गई. पूरे प्रकरण के बाद सीएम नीतीश ने तत्काल हाईलेवल बैठक बुलाकर साफ कर दिया कि वह इस तरह की बातें बर्दाश्त नहीं करेंगे.
वहीं, वीआईपी अध्यक्ष मुकेश सहनी सीएम नीतीश कुमार के पक्ष में खड़े दिख रहे हैं जबकि बीजेपी भी आक्रमक मूड में उतर गई. बीजेपी एक तरफ मुकेश सहनी की कैबिनेट से छुट्टी कराना चाहती है तो दूसरी तरफ जेडीयू के साथ भी रिश्ते बिगड़ रहे हैं. ऐसे में बिहार विधानसभा का नंबर गेम क्या है?
बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें है, जिनमें से फिलहाल 242 सदस्य है और एक सीट रिक्त है. इस तरह बहुमते लिए कम से कम 122 विधायकों का आंकड़ा चाहिए.
एनडीए को 127 विधायकों का समर्थन
बीजेपी के 74 विधायक जेडीयू के 45 विधायक HAM के 4 विधायक VIP के 3 विधायक निर्दलीय एक विधायक
बता दें कि 2015 में जेडीयू ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी और बीजेपी गठबंधन को मात देकर सत्ता हासिल की थी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे तो तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने थे, लेकिन दो साल के बाद जेडीयू और आरजेडी में रिश्ते बिगड़ गए थे. ऐसे में नीतीश कुमार ने 2017 में आरजेडी-कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ हाथ मिलकर मुख्यमंत्री बन गए थे.
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर हुई थी. जेडीयू के विधायकों की संख्या बीजेपी के काफी कम हो गई थी. इसके बावजूद बीजेपी ने नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी सौंप दी थी और अपने दो सीएम बनाए थे. पिछले दो सालों से नीतीश कुमार अपने खोए हुए सियासी आधार को दोबारा से हासिल करने की लगातार कवायद कर रहे हैं. ऐसे में कई मुद्दों पर बीजेपी और जेडीयू के बीच सियासी तकरार जारी है.
वहीं, अब बिहार में लखीसराय की घटना को लेकर जिस तरह से एनडीए के सहयोगी दलों के बीच सियासी घमासान मचा हुआ है. बीजेपी मुकेश सहनी को हरहाल में कैबिनेट से बाहर करने के लिए मोर्चा खोल रखा है तो लखीसराय की घटना को लेकर सियासी तरह से बीजेपी और जेडीयू के बीच कड़वाहट दिख रही है. वहीं, एनडीए और विपक्ष के बीच बहुत ज्यादा सीटों का फर्क नहीं है. ऐसे में अगर एनडीए के समर्थन कर दोनों छोटे दल इधर से उधर हुए तो सरकार पर संकट गहरा जाएगा.
बता दें कि नीतीश कुमार बजट सत्र के दौरान लखीसराय के मामले को जैसे विधान सभा में हर दो से तीन दिन बाद सवाल उठा कर सरकार को घेरने का प्रयास हो रहा है, उससे खासे नाराज थे. लखीसराय का इलाका विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा का निर्वाचन क्षेत्र है. वहां सरस्वती पूजा के दौरान कोविड नियमों के उल्लंघन के आरोप में बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी से ना केवल सिन्हा बल्कि बिहार बीजेपी का नेतृत्व भी नाराज़ था.
इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष की सही कार्रवाई की अपील को पहले स्थानीय स्तर पर और फिर डीजीपी के स्तर पर ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास हुआ, इससे वो नाराज थे. वहीं, नीतीश कुमार के तेवर से साफ है कि उन्हें एक सीमा से अधिक सरकार के कामकाज में विधान सभा अध्यक्ष हो या बिहार भाजपा का कोई वरिष्ठ नेता या मंत्री हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं है. भले ही उनकी पार्टी संख्या के आधार पर विधान सभा में नंबर तीन क्यों न हो लेकिन वो सरकार अपनी मर्जी यानी अपने विवेक के आधार पर ही चलाएंगे. नीतीश की बातों से ये भी साफ झलका कि विधान सभा में जो कुछ हो रहा है, वह संविधान सम्मत नहीं है.
हालांकि, भाजपा और आरजेडी के विधायकों के आरोप है कि नीतीश अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के प्रभाव और दबाव में आकर इस मामले में अधिकारियों को बचा रहे हैं. ललन और विजय सिन्हा के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है, क्योंकि लखीसराय ललन सिंह के मुंगेर संसदीय क्षेत्र का ही हिस्सा है. बिहार भाजपा के विधायक ये भी मानते हैं कि फिलहाल एनडीए सरकार पर इसका कोई प्रतिकूल असर नहीं होगा, क्योंकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व फिलहाल नीतीश को लेकर कोई राजनीतिक जोखिम नहीं उठाना चाहता.