यूक्रेन इस वक़्त पूरी तरह से रूस का आक्रामक हमला झेल रहा है, साथ ही वो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है.यूक्रेन पर रूस के हमले को तीन दिन बीत चुके हैं. इस बीच रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीएव तक पहुंच चुकी है. लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आगे क्या होगा?
रूस के लिए सबसे बड़ा इनाम कीएव यानी यूक्रेन की राजधानी है. एक ऐसा शहर जहां अभी लड़ाई जारी है.ये स्पष्ट है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिम की तरफ़ झुकाव रखने वाले अपने पड़ोसी देश पर क़ब्जे को लेकर अपने डिफ़ेंस चीफ़ की योजना का महीनों अध्ययन किया.इस योजना के अनुसार यूक्रेन पर आक्रमण उत्तर, पूर्व और दक्षिण – तीन तरफ से किया जाता है, आर्टिलरी और मिसाइल हमले के ज़रिए प्रतिरोध को कम किया जा सकता है, जिसके बाद पैदल सेना और टैंक रणभूमि में उतारे जाते हैं.
पुतिन चाहते हैं कि जल्द से जल्द यूक्रेन की ज़ेलेंस्की सरकार को आत्मसमर्पण कराया जाए और उसकी जगह रूस की तरफ़ झुकाव रखने वाली एक सरकार को सत्ता सौंपी जाए. इसका मकसद देश में राष्ट्रीय प्रतिरोध के लंबे अभियान को गति देने से रोकना भी है.इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज़ के ब्रिगेडियर बेन बैरी का कहना है, “कीएव पर सफ़लतापूर्वक क़ब्ज़ा, रूस के लिए सैन्य और राजनीतिक सफ़लता साबित होगा, जिसका रणनीतिक प्रभाव भी पड़ेगा.”
वो कहते हैं, “लेकिन रूस, यूक्रेन सरकार को ख़त्म नहीं कर सकता, बशर्ते उसके पास देश के पश्चिमी हिस्से में एक नया सरकारी मुख्यालय स्थापित करने की योजना हो.”लेकिन रूस का हमला पूरी तरह उसके प्लान के मुताबिक़ नहीं रहा है. ब्रिटेन के डिफ़ेंस इंटेलिजेंस का कहना है कि इस हमले में सैकड़ों रूसी सैनिक मारे गए हैं और उन्हें भारी प्रतिरोध झेलना पड़ा है और ये अब भी जारी है.
रूस की सेना यूक्रेन की सेना के मुक़ाबले कई गुना बड़ी है. ये क़रीब एक-तीन के अनुपात में है. यूक्रेन के सैन्य नेतृत्व की क्वॉलिटी पर भी सवाल उठे हैं. ये पूछा जा रहा है कि यूक्रेन की सेना आख़िर कितनी देर तक डटी रह सकती है.
नेटो कहां है?
ऐसे वक़्त में नेटो जानबूझकर यूक्रेन में नहीं है. कीएव की तरफ़ से लगातार मदद की अपील की गई लेकिन नेटो ने यूक्रेन में सेना भेजने से साफ़ तौर पर इनकार कर दिया है.दलील ये दी गई है कि ऐसा इसलिए क्योंकि यूक्रेन नेटो का सदस्य नहीं है. साफ़-साफ़ कहें तो नेटो, रूस के साथ जंग नहीं छेड़ना चाहता.
अगर रूस इस हमले के बाद यूक्रेन पर लंबे समय तक क़ब्ज़ा रखता है तो ये कहा जा सकता है कि पश्चिमी देश यूक्रेन में विद्रोहियों का समर्थन कर सकते हैं. जैसे अमेरिका ने 1980 के दशक में अफ़ग़ान मुजाहिदीनों का समर्थन किया था. ये भी जोख़िम के बिना नहीं होगा क्योंकि ऐसा हुआ तो पुतिन किसी न किसी तरह की जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं.
इस बीच, नेटो ने अपने सदस्य देशों की पूर्वी सीमाओं की तरफ़ ध्यान किया है. विडंबना ये है कि रूस नेटो से अपनी सेना को यहां से हटाकर पश्चिम की तरफ ले जाने की मांग कर रहा है, लेकिन यूक्रेन पर क़ब्ज़े की उसकी कार्रवाई का नतीजा इसके ठीक उलट हुआ है. नेटो ने यूक्रेन के पास अपने सदस्य देशों में अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है और अधिक सतर्क हो गया है.
ब्रिटेन के सांसद और संसद की रक्षा समिति के चेयरमैन टोबिस एलवुड का कहना है कि यूरोप के लिए ये ‘वेक-अप’ कॉल है. उन्होंने कहा, “दुख की बात ये है कि यहां केवल तीन दशक तक ही शांति रही. एक तानाशाह से निपटने के लिए हमें अपनी योजना को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है.”
क्या हालात और बिगड़ सकते हैं?
यूक्रेन के लोगों के लिए ये जितना बुरा हो सकता है, हो रहा है. अपने देश के पूर्वी हिस्से में आठ साल तक रूस समर्थित अलगाववादियों से लड़ने के बाद अब यूक्रेन को परमाणु संपन्न पड़ोसी देश की गोलीबारी, बमबारी और रॉकेट हमलों को झेलना पड़ रहा है.
यूक्रेन एक ऐसा देश है जिसने 1991 में रूस से आज़ादी के लिए बड़े पैमाने पर मतदान किया था. उसने अपने परमाणु हथियारों का त्याग तक कर दिया था. अब अगर रूस इस देश को पूरी तरह से अपने अधीन कर लेता है तो फिर से यूक्रेन तीन दशक पहले वाली स्थिति में चला जाएगा.
नेटो के रक्षा प्रमुखों ने जुलाई 2021 में दिए पुतिन के भाषण के अर्थ को फिर से समझने की कोशिश की है. उनका मानना है कि नेटो को अपने सदस्य देशों की पूर्वी सीमाओं को तुरंत मज़बूत करने की ज़रूरत है. ऐसा न हो कि पुतिन पोलैंड, लिथुआनिया, लात्विया और एस्टोनिया जैसे देशों को अपना अगला निशाना बनाने की कोशिश में जुट जाएं.