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The Voice Of Bihar > Blog > कहानी > हावड़ा ब्रिज का इतिहास कोलकाता से जुड़ाव का मार्ग |हावड़ा ब्रिज की अनसुनी कहानी
कहानी

हावड़ा ब्रिज का इतिहास कोलकाता से जुड़ाव का मार्ग |हावड़ा ब्रिज की अनसुनी कहानी

Saroj Raja
Last updated: 2024/10/06 at 3:55 PM
Saroj Raja
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8 Min Read
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कोलकाता का हावड़ा ब्रिज शहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हुगली नदी पर बना है और हावड़ा को कोलकाता से जोड़ता है। इसे बिना किसी नट-बोल्ट के और केवल दो पिलर्स पर आधारित बनाना एक अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि है। इस ब्रिज पर प्रतिदिन लाखों लोग और गाड़ियां गुजरती हैं। इसे 1942-43 के दौरान जापान द्वारा बमबारी का निशाना बनाया गया, लेकिन यह सुरक्षित रहा। इसकी स्थापना का उद्देश्य हावड़ा और कोलकाता के बीच व्यापार को आसान बनाना था, क्योंकि उस समय नदी पार करना मुश्किल था। रेलवे स्टेशन के निर्माण के बाद, यह पलायन और व्यापार में बाधा उत्पन्न कर रहा था।

ब्रिटिश सरकार ने 1852 में इस समस्या का समाधान निकालने के लिए हुगली नदी पर एक ब्रिज बनाने का निर्णय लिया। ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी के प्रमुख इंजीनियर जॉर्ज टर्नबुल को इस काम का जिम्मा सौंपा गया, जिन्होंने आवश्यक परिवेक्षण किया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 1870 में हावड़ा ब्रिज बनाने का काम प्रमुख इंजीनियर सर ब्रैडफोर्ड लेस्ली को सौंपा। उनके डिज़ाइन में एक ऐसा पंटन ब्रिज बनाने का विचार था जिसे आवश्यकतानुसार खोला जा सकता था ताकि बड़े जहाज भी गुजर सकें।

Chapter

के स्थानांतरण के चलते बंगाल में राजनीतिक गतिविधियों में और भी तेजी आ गई। इस उथल-पुथल के बीच नए ब्रिज पर काम अब तक शुरू नहीं हो सका था। 1911 में जब राजधानी दिल्ली बना दी गई, तो कोलकाता की महत्वता और कम हो गई, जिससे ब्रिज के निर्माण की योजनाएं एक बार फिर ठंडी पड़ गईं।

हालांकि, 1917 में नए प्रस्तावों के साथ फिर से काम शुरू करने की आवश्यकता महसूस की गई। अगली बार ब्रिटिश गवर्नमेंट ने एक नई इंजीनियरिंग कंपनी को आवश्यक अध्ययन और डिज़ाइन विकसित करने के लिए नियुक्त किया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, हावड़ा ब्रिज के निर्माण का सपना फिर से जागृत हुआ। इसके निर्माण की प्रक्रिया में न केवल प्रौद्योगिकी में सुधार आया, बल्कि नए राजनीतिक परिदृश्य ने भी इसमें योगदान दिया।

नए ब्रिज की योजना में आधुनिक तकनीकों को शामिल किया गया, जो वहन क्षमता और सुरक्षा दोनों को सुनिश्चित करती थीं। इस बार, निर्माण के लिए विश्वस्तरीय इंजीनियरिंग मानकों को अपनाने पर जोर दिया गया। इस प्रकार, जब 1930 के दशक में काम आगे बढ़ा, तो सुनिश्चित किया गया कि सभी सुरक्षा और डिजाइन प्रावधानों का पालन हो।

1936 में अंततः इस ब्रिज का निर्माण पूरा हुआ, जो अब ना केवल डिजाइन में उत्कृष्टता का प्रतीक था बल्कि यह कोलकाता और हावड़ा के बीच लोगों और व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण संचार मार्ग भी बन गया। इसके उद्घाटन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी एक नया संजीवनी मिली, क्योंकि इसके ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ इसकी शान और स्थायित्व ने इसे भारत के सबसे पहचानने योग्य संरचनाओं में से एक बना दिया।

बनाने के लिए कहा गया था, जिससे नदी के प्रवाह में किसी प्रकार का अवरोध न हो। यह निर्णय ब्रिज की स्थिरता और प्रभावशीलता के लिए महत्वपूर्ण था। निर्माण के दौरान विभिन्न तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन इंजीनियरों की मेहनत और निपुणता ने इन्हें सफलतापूर्वक पार किया।

1942 में हावड़ा ब्रिज के उद्घाटन के बाद, यह न केवल एक प्रमुख यातायात मार्ग बना बल्कि इसके सौंदर्य और वास्तुकला ने इसे एक पर्यटकीय स्थल भी बना दिया। ब्रिज की अनूठी डिज़ाइन ने इसे दुनिया के सबसे स्थायी और प्रभावशाली संरचनाओं में से एक बना दिया।

बातचीत के अनुसार, डायरेक्टर चंद्रनाथ ने बताया कि धातु की जंग लगने का यह मामला बेहद चिंता का विषय है। हावड़ा ब्रिज की सुरक्षा और कार्यक्षमता को बनाए रखने के लिए विभिन्न उपायों की आवश्यकता थी। इस नाजुक स्थिति के बावजूद, ब्रिज पर यातायात की बढ़ती मात्रा ने इसे संवेदनशील बना दिया था।

विभिन्न सर्वेक्षणों और निरीक्षणों के आधार पर यह स्पष्ट हुआ कि ब्रिज की संरचना चुनावी मिसाल बन गई है, जहां इसे सुधारने और सुरक्षित रखने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। साथ ही, स्थानीय प्रशासन ने यह भी तय किया कि ब्रिज के चारों ओर जागरूकता फैलाने के लिए अभियानों की शुरुआत की जाए ताकि लोग ब्रिज की संरचना को नुकसान पहुँचाने वाले व्यवहार से बचें।

इसी दौरान, साल 2017 में, हावड़ा ब्रिज के मरम्मत और रखरखाव के लिए एक व्यापक योजना बनाई गई थी। यह योजना न केवल ब्रिज के तकनीकी पहलुओं पर ध्यान देने के लिए थी, बल्कि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को भी संरक्षित करने के लिए थी। स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए इसे एक सुरक्षित स्थल बनाने के लिए विभिन्न सामुदायिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।

ब्रिज के आसपास के क्षेत्र में शैक्षणिक संस्थानों और स्थानीय संगठनों के सहयोग से अनुसंधान और अध्ययन भी किए गए, जिससे पता चला कि ब्रिज की स्थिति में सुधार के लिए लोकल स्तर पर निवासियों का सहयोग कितना आवश्यक है। इस प्रकार, हावड़ा ब्रिज न केवल एक प्रशासनिक चुनौती था, बल्कि एक सामुदायिक परियोजना बन गया, जिसमें सभी का दायित्व था कि वे अपने इस ऐतिहासिक धरोहर की सुरक्षा करें।

यह आस्था और साझा जिम्मेदारी, हावड़ा ब्रिज को एक बार फिर से उसकी पुराने गरिमा की ओर ले जाने का प्रयास कर रही है, जो कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाली एक अनमोल कड़ी है।

भट्टाचार्य के अनुसार, पान और चूना में मौजूद तत्वों का स्टील पर एसिड जैसे असर होता है, जिससे ब्रिज की संरचना तेजी से कमजोर हो रही है। इसे जंग से बचाने के लिए पोटस को पिलर्स के किनारे फाइबर ग्लास लगाना पड़ा। इसके अलावा, एटमॉस्फेरिक कंडीशंस और बायोलॉजिकल वेस्ट भी इस पुल को नुकसान पहुँचा रहे हैं।

ब्रिज में रहने वाले लाखों पक्षियों के कारण भी समस्या बढ़ी है, जो अपने एक्सक्रीट के जरिए जॉइंट और बॉडी को कमजोर कर रहे हैं। इस नुकसान से बचने के लिए कोलकाता पोर्टस नियमित रूप से इस पुल की सफाई कराता है। समय-समय पर इसकी पेंटिंग और प्राइमर लगाने का काम भी होता है, ताकि यह ब्रिज लंबी अवधि तक टिकाऊ बना रहे।

हावड़ा ब्रिज, जो कोलकाता की पहचान बना हुआ है, आज 80 से अधिक वर्षों के बाद भी लोगों के लिए आवश्यक बना हुआ है। अगर सभी उपाय सही तरीके से लागू होते रहें, तो यह ब्रिज आने वाले कई दशकों तक कोलकाता और हावड़ा के लिए एक गर्व का कारण बना रहेगा।

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