लालू प्रसाद यादव किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। बीते कई दशकों से वे आज भी बिहार की सियासत के धुरी बने हुए हैं और सूबे की सियासत के मानचित्र पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहते हैं। हालांकि समाजिक संघर्ष का बिगुल बजाने वाले लालू प्रसाद की जिंदगी भी कम संघर्षों में नहीं गुजरी है।
लालू प्रसाद की अनसुनी कहानी
लालू प्रसाद की माने तो उनका जीवन बेहद ही मामूली ढंग से शुरू हुआ। आसपास सबकुछ इतना साधारण था कि उससे अधिक साधारण कुछ और हो ही नहीं सकता था। गोपालगंज के फुलवरिया में जन्मे लालू प्रसाद का जीवन अभावों में गुजरा। लालू प्रसाद के मुताबिक धान के पुआल से सोने के लिए बिस्तर बनता था। इसके साथ ही उनकी मां जूट के बोरे में पुआल, कपास और पुराने कपड़े भरकर कंबल बनाती थीं ताकि बच्चों को ठंड न लग सके।
अभावों में गुजरा लालू प्रसाद का जीवन
लालू प्रसाद बताते हैं कि उनका जीवन काफी अभावों में गुजरा है। वे जब थोड़े बड़े हुए तो हाथ से सिली हुई एक बनियान मिली, जिसे पाकर वे काफी खुश हुए थे लेकिन वे रोज नहा नहीं पाते थे और न ही कपड़ों को धो पाते थे क्योंकि उनके पास बदलने के लिए कोई कपड़े नहीं होते थे। वे दिन में अक्सर मवेशियों को चराने के लिए घर से निकल जाते थे और उनकी मां सिकहुती में सत्तू, एक पुड़िया में थोड़ा नमक और एक बाल्टी पानी लेकर खेतों में पहुंच जाती थीं और फिर पुआल के बर्तन में सत्तू की पिंडी बनाती थी। इसे चटपटा बनाने के लिए उनके पास अचार तक नहीं होता था और तो और रात में मोटे अनाज खाकर उनका गुजारा होता था।
हींग बेचने वाले ने बदल दी लालू की किस्मत
लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया, जब लालू प्रसाद की किस्मत करवट लेने लगी। लालू प्रसाद के मुताबिक एक हींग बेचने वाले ने लालू प्रसाद की जिंदगी बदल दी। दरअसल, हुआ यूं कि एकबार उनके गांव में हींग बेचने वाला आया। उसने हींग का झोला नजदीक के कुएं के किनारे पर रख दिया। इसके बाद शरारती लालू प्रसाद ने उसका झोला कुएं में फेंक दिया।
फिर क्या था, हींग बेचने वाले ने आसमान सिर पर उठा लिया और गुस्से में लालू प्रसाद की मां से शिकायत कर दी। उन्हीं दिनों लालू प्रसाद के बड़े भाई मुकुंद यादव गांव आए हुए थे, जिनसे उनकी मां ने लालू प्रसाद की शरारतों से तंग आकर शिकायतें की और अपने साथ पटना ले जाने की गुहार लगाने लगीं। उस वक्त पटना जाने की बातें सुनकर लालू प्रसाद खूब रोये लेकिन आखिरकार उन्हें अपने भाई के साथ पटना जाना पड़ा, जहां से उनकी पूरी किस्मत ही बदल गई।
शेखपुरा में शुरू की पढ़ाई
यहां आते ही मुकंद भाई ने लालू प्रसाद का दाखिला शेखपुरा के उच्च प्राथमिक विद्यालय में करा दिया और फिर वेटनरी कॉलेज में एक कमरे के मिले चपरासी क्वार्टर में रहने लगे। शेखपुरा से प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका एडमिशन BMP कैंपस के सरकारी माध्यमिक स्कूल में कराया गया। वे मिडिल स्कूल में अपनी कक्षा के मॉनिटर भी थे। वे अक्सर अपने मसखरेपन से लोगों का दिल जीत लेते थे।
सियासी अखाड़े में धुरंधरों को पटका
यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे पटना के मिलर हाईस्कूल में दाखिला लिया और मैट्रिक की परीक्षा पास की और फिर BN कॉलेज में एडमिशन लेने के साथ ही छात्र राजनीति में कूद पड़े और फिर इसके बाद जो कुछ हुआ, वो इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि आखिर उन्होंने कैसे लंबे संघर्ष के बलबूते सियासी अखाड़े में बड़े-बड़े धुरंधरों को पटकते हुए गरीब-गुरबों के सपनों को पंख देने के साथ-साथ अपनी जिंदगी को संवारा, फिर बिहार के मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली।