बिहार विधानसभा चुनाव के बीच नवादा जिले की सियासत में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. जिले की दो अहम सीटों-हिसुआ और रजौली में महागठबंधन को करारा झटका लगा है, क्योकि कांग्रेस और राजद के दो प्रमुख नेताओं ने नाराजगी जताते हुए एनडीए उम्मीदवारों का समर्थन करने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में दोनों ही सीटों पर चुनावी समीकरण तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं. नवादा जिले में कांग्रेस और राजद के दो बड़े नेताओं के एनडीए के पक्ष में जाने से महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ गई हैं. हिसुआ और रजौली सीटों पर मुकाबला अब और कड़ा हो गया है. चुनाव प्रचार के चरम पर यह बदलाव महागठबंधन के लिए बड़ा झटका कहा जा रहा है.
हिसुआ विधानसभा सीट पर पहला झटका
महागठबंधन को पहला झटका हिसुआ विधानसभा सीट पर लगा, जहां कांग्रेस प्रत्याशी नीतू देवी की देवरानी और पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष आभा देवी ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने खुलकर भाजपा प्रत्याशी अनिल सिंह के समर्थन का ऐलान किया. शनिवार को आभा देवी अनिल सिंह के आवास पर पहुंचीं और सार्वजनिक रूप से उनके पक्ष में प्रचार करने की घोषणा की. आभा देवी ने कहा कि वह लंबे समय से पार्टी में सक्रिय रही हैं, लेकिन उन्हें लगातार नजरअंदाज किया गया. वह खुद हिसुआ सीट से चुनाव लड़ना चाहती थीं, मगर पार्टी ने मौका नहीं दिया. इसके अतिरिक्त उन्होंने आरोप लगाया कि टिकट वितरण के दौरान उनके परिवार की उपेक्षा की गई और नीतू देवी ने भी उनका सम्मान नहीं रखा और इसी नाराजगी में उन्होंने एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला किया.
रजौली विधानसभा सीट पर दूसरा बड़ा झटका
दूसरा बड़ा झटका महागठबंधन को रजौली विधानसभा सीट से लगा है. यहां राजद के वरिष्ठ नेता और दो बार के पूर्व विधायक बनवारी राम ने पार्टी छोड़कर भाजपा प्रत्याशी विमल राजवंशी का समर्थन कर दिया. बनवारी राम का नाम इस बार राजद उम्मीदवारों की सूची में काफी आगे चल रहा था, लेकिन अंतिम क्षणों में टिकट किसी और को दे दिया गया. इससे नाराज बनवारी राम ने एनडीए के पक्ष में आने का निर्णय लिया. नवादा के सांसद विवेक ठाकुर ने उन्हें भाजपा की सदस्यता भी दिलाई.
राजनीतिक समीकरण में तेजी से बदलाव
एक ही दिन में कांग्रेस और राजद के दो नेताओं द्वारा एनडीए को समर्थन दिए जाने से नवादा जिले की राजनीतिक तस्वीर बदल गई है. स्थानीय राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इन घटनाओं से हिसुआ और रजौली दोनों ही सीटों पर मुकाबला अब और दिलचस्प हो गया है. महागठबंधन के लिए यह झटका उस समय आया है जब चुनाव प्रचार अपने पूरे चरम पर है. अब देखना होगा कि इन राजनीतिक बदलावों का असर मतदान और नतीजों पर कितना पड़ता है.

