सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट में 6 हजार से अधिक जूनियर इंजीनियर्स की नियुक्ति के लिए साल 2019 के सेलेक्शन प्रोसेस को रद्द करने के फैसले को शुक्रवार को अनुचित बताया. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसे रद्द करना प्रोसेस खत्म होने के बाद नियमों को बदलने के समान है. इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने बिहार टेक्निकल सर्विस कमीशन (बीटीएससी) को निर्देश दिया कि वह पटना हाईकोर्ट में दाखिल नई सेलेक्शन के अनुसार नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ाए.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा, ‘हाईकोर्ट द्वारा 19 अप्रैल 2022 को पारित आदेश के मद्देनजर नई चयन सूची तैयार की जाएगी और नई चयन सूची में यथासंभव उन मेधावी छात्रों को भी शामिल किया जाएगा, जो पात्र थे और केवल नियमों में साल 2017 के संशोधन के कारण अयोग्य घोषित कर दिए गए थे.’ इसने बीटीएससी को तीन महीने के भीतर सफल छात्रों की संशोधित चयन सूची तैयार करने का निर्देश दिया और राज्य सरकार को उसके बाद 30 दिन के भीतर उन्हें नियुक्त करने का आदेश दिया.
पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती
पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर शीर्ष अदालत का यह निर्णय आया है, जिसने राज्य के उस फैसले पर गौर करने के बाद नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ लंबित मामलों को बंद कर दिया था. इसमें चयन प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया था. हाईकोर्ट संशोधन के एक नियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था. नियम में बिहार में पद पर चयन और नियुक्ति के लिए तकनीकी योग्यता पात्रता निर्धारित की गई थी. बीटीएससी द्वारा मार्च 2019 में एक विज्ञापन जारी किया गया था, जिसमें विभिन्न राज्य विभागों में जूनियर इंजीनियर के पद पर 6,379 रिक्तियों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे.
क्या था संशोधन?
नियमों के अनुसार अभ्यर्थी के पास संबंधित तकनीकी शिक्षा परिषद/विश्वविद्यालय का सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा होना चाहिए और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए. कुछ अभ्यर्थियों ने अपने अप्लीकेशन खरिज करने के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, क्योंकि उन्होंने प्राइवेट यूनिवर्सिटी से अपेक्षित डिप्लोमा प्राप्त किया था, जो एआईसीटीई द्वारा अप्रूव्ड नहीं थे.