केके पाठक के खिलाफ 19 दिसंबर को एक दो नहीं बल्कि कुल 15 विधानपार्षद राजभवन पहुंच गए थे। इनमें से ज्यातर एमएलसी सत्ताधारी महागठबंधन के ही थे। उसी महागठबंधन के जिसके अगुवाई सीएम नीतीश कुमार करते हैं। बड़ी बात ये कि केके पाठक स्वयं सीएम नीतीश कुमार की पसंद के अफसर हैं। नीतीश को जब किसी विभाग में दिक्कतों का अंबार नजर आता है तो वहां केके पाठक की नियुक्ति कर देते हैं। ये जगजाहिर है कि एक बार केके पाठक कुर्सी पर बैठ गए तो सामने कौन है, इसकी वो परवाह नहीं करते हैं। कहा जाता है कि उनका सीधा हिसाब है, नियम तोड़ेंगे तो नाप दिए जाएंगे। लेकिन 15 MLC के राजभवन जाने के बाद अब मामले में नया मोड़ आ गया है। अब शिक्षा विभाग, स्कूल शिक्षकों और सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा हो रही है कि ऐसी नौबत आई तो कार्रवाई कौन करेंगे? सीएम नीतीश कुमार या फिर राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर? क्या कहता है कानून, समझिए यहां
केके पाठक की सख्ती से नेताओं में भी खलबली
केके पाठक की इस सख्ती से नेता इसलिए भी घबराए हुए हैं कि कहीं उनके कायदे प्लस कानून की लाठी उनके वोट बैंक को न बिदका दे। ऐसे में वो राजभवन में उनके खिलाफ न सिर्फ शिकायतों का पुलिंदा लेकर पहुंचे। बल्कि उन्हें उनके पद से हटाने की मांग की चिट्ठी राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर के हाथों में सौंप दी।
नीतीश के हाथ में ये अधिकार ही नहीं
दरअसल केके पाठक पर कार्रवाई करना किसी एमएलसी के बस की बात ही नहीं है। इतना ही नहीं ये भी जान लीजिए कि खुद राज्य के मुख्यमंत्री (चाहे कुर्सी पर जो भी हो) के पास भी किसी IAS को पद से हटाने का अधिकार नहीं है। साधारण शब्दों में समझिए तो नीतीश केके पाठक का या तो ट्रांसफर कर सकते हैं या फिर सस्पेंड। यानी अगर महागठबंधन के नाराज विधानपार्षद नीतीश के पास पहुंचते भी हैं तो शायद ही उनकी मांग पर कोई विचार हो पाए, क्योंकि इस मामले में नियम एकदम साफ हैं।
क्या कर सकते हैं राज्यपाल?
अब अगर नियम की बात करें तो राज्यपाल के पास न तो किसी IAS को हटाने या फिर उसे निलंबित करने का अधिकार है। हालांकि किसी IAS के निलंबन के मामले में राज्यपाल सरकार से कारण जरूर पूछ सकते हैं कि फलां आईएएस को सस्पेंड क्यों किया गया। ऐसे में राजभवन से भी केके पाठक पर कुछ कार्रवाई हो, ये मुमकिन नहीं है। कुल मिलाकर MLC को यहां से भी राहत नहीं मिलने वाली।
आखिर कौन हटा सकता है केके पाठक या फिर किसी IAS को?
अब समझिए असल नियम जो ये कहता है कि किसी IAS को राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं। भारत की केंद्रीय सरकार इसके लिए गजट में नोटिफेकेशन निकालती है। इसीलिए IAS अफसर गजटेड अधिकारी कहे जाते हैं। ऐसे में सीधी सी बात है कि चाहें वो केके पाठक हों या फिर कोई और आईएएस उन्हें हटाने का अधिकार सिर्फ भारत के राष्ट्रपति के पास है। लेकिन इसमें भी एक और नियम है। वो नियम ये कहता है कि अगर जांच में IAS दोषी पाए जाएंं या उनकी गलती निकले तभी ही उन्हें सस्पेंड या डिसमिस किया जा सकता है। इसमें भी एक प्रावधान है कि संबंधित IAS को भी उनकी दलील रखने का मौका मिलता है। इसके बाद जांच की रिपोर्ट भारत सरकार और लोक सेवा आयोग के पास जाती है। अंत में राष्ट्रपति ही इस पर फैसला ले सकते हैं।
केके पाठक से फिलहाल MLC को राहत मिलने की संभावना NIL
अब ऐसे समझ लीजिए कि केके पाठक को हटाने की MLC की मांग काफी हद तक नियमों के मामले में कमजोर पड़ जाएगी। पहले तो उनके खिलाफ जांच का आदेश हो सकता है, उसके बाद उनका भी पक्ष सुना जाएगा (अगर ऐसा हुआ तो)। तब जाकर रिपोर्ट आएगी। फिर उसे केंद्र और PSC को भेजा जाएगा। कुल मिलाकर कई लीगल प्रोसेस हैं। ऐसे में जो MLC केके पाठक को फिलहाल पद से हटाने की सोच रहे हैं, तो ये उनके लिए मुश्किल ही है।