सीतामढ़ी: जिले के सरकारी प्राइमरी/मिडिल स्कूलों में शौचालय की अब नियमित सफाई होगी। इस पर हर माह मोटी रकम खर्च होगी। खर्च का उपाय कहां से होगा, विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने इसका उपाय बता दिया है। खास बात यह कि जिले के प्राइमरी/मिडिल स्कूलों के शौचालयों के अलावा कुर्सी और टेबल की सफाई के लिए केके पाठक ने आउटसोर्सिंग का भी चयन कर उनके बीच प्रखंडों का आवंटन कर दिया है।
सीतामढ़ी में तीन आउटसोर्सिंग एजेंसी को शौचालयों की साफ-सफाई की जिम्मेवारी मिली है। अपर मुख्य सचिव पाठक ने स्कूलों का निरीक्षण कर पाया है कि तमाम स्कूलों में शौचालय बन चुके है। इन शौचालयों में से बहुत सारे कार्यरत है, तो बहुत ठप है। वहीं, शौचालयों की नियमित सफाई की व्यवस्था नहीं है।
सफाई के लिए अपर मुख्य सचिव ने आउटसोर्सिंग का चयन कर उन्हें प्रखंड भी आवंटित कर दिया है, जो एजेंसी स्कूलों को जरूरत के मुताबिक स्वीपर, तेजाब, हार्पिक, फिनाइल उपलब्ध कराएगी और रोज सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित कराएगी। इतना ही नही, स्कूल में झाड़ू दिलाना, टेबल और कुर्सी की सफाई कराना भी एजेंसी की ही जिम्मेवारी होगी। इस काम के लिए एक दर भी निर्धारित कर दिया गया है।
खर्च के उपाय का पाठक का सुझाव
के के पाठक ने अपनी सोच/योजना से पत्र भेज डीएम को अवगत कराया है। इस सफाई मद में होने वाले खर्च का उपाय कहां से किया जा सकता है, उसका सुझाव देने के साथ सुझावों पर अमल कर बताने को भी कहा है। उन्होंने डीएम से कहा है कि मनरेगा के स्वच्छता मद की राशि से शौचालयों की साफ-सफाई कराने पर विचार करें। खनन सेस की राशि उपयोग में लाने पर विचार करने को कहा है। खनन सेस की राशि खनन विभाग उपलब्ध कराता है। इस राशि में शिक्षा विभाग का भी हिस्सा होता है। भारत सरकार के स्तर से जारी गाइडलाइन में कहां पर स्पष्ट लिखा हुआ है कि खनन सेस की राशि से शौचालयों की सफाई हो सकती है, उसका जिक्र पत्र में साफ कर दिया है।
एनजीओ से भी मदद लेने की अपील
पाठक ने सीतामढ़ी समेत सूबे के 12 जिलों के डीएम को इस पर विचार करने को कहा है कि क्या इस मद (आकांक्षी जिला को मिले फंड) से शौचालय की सफाई पर खर्च किया जा सकता है या नहीं। कहा है कि बहुत सारे एनजीओ भी स्कूलों के लिए काम करते है। ऐसे एनजीओ से अन्य कोई मदद नहीं मांगे, बल्कि उनसे शौचालय की सफाई के लिए स्वीपर की मांग करें। अपर मुख्य सचिव ने डीएम से कहा है कि सांसद और विधायक निधि से स्कूलों का सिर्फ बाउंड्री वाल का काम कराने की कोशिश करें। कारण कि इस मद में विभाग के पास पैसा नगण्य है।