सीतामढी / भुतही में हजारों लाखों लोगों की आस्था और मिस्त्री की कुशल कारीगरी. लेकिन कभी कभी असंतुलन के कारण सीधा खड़ा करने में समस्या आ जाती है. सबकी ऑंखें नम हो गयी, साँसे थम सी गयी ज़ब भुतही रैन में फुलकाहा का झंडा खड़ा करने में टूट गयी.
भुतही गाँव में 1954 ई से महावीरी झंडा मनाया जाता है. इस रैन में दो दो झंडा खड़ा होता है. एक भुतही का, दूसरा फुलकाहा का. फुलकाहा गाँव के लोग के साहस और आस्था देखिये वो उतनी बड़ी झंडा कंधा पर लादकर लगभग 5-7 किमी दूर भुतही गाँव के रैन में लाते हैं. सम्पूर्ण फुलकहा ग्रामवासी धन्यवाद के पात्र हैं. फिर दोनों गाँव के लोग मिल जुल कर झंडा का पर्व मनाते हैं, जिसके साक्षी बनते हैं आसपास के गाँव और नेपाल तक के लाखों लोग.
मामूली असंतुलन के कारण झंडा थोड़ा टूट गया लेकिन साहस और आस्था वही बरकरार. यह क्षण सबके मोबाइल में कैद हो गया. थोड़ा गम जरूर हुआ लेकिन फिर भी शान्ति, सदभाव और हर्षोल्लास के साथ अंततः भुतही झंडा सम्पन्न. इसमें जिला प्रशासन, सीतामढ़ी की भी सराहनीय भूमिका रही साथ में झंडा समिति के सदस्यों का भी. जोर से बोलिये जय बजरंग
आपने बहुत ही दिल से और आस्था से भरपूर वर्णन किया। महावीरी झंडा का खड़ा होना केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह आस्था, एकता, और साहस का प्रतीक है। फुलकाहा और भुतही के लोगों का साहस और भक्ति देख कर ही इतनी ऊँची झंडा हर साल खड़ा होती है, भले ही इस बार कुछ असंतुलन के कारण झंडा टूट गया हो, पर यह आस्था की शक्ति को कम नहीं कर सकता।
इस अवसर पर फुलकाहा गाँव के निवासियों का समर्पण और पूरे आयोजन में जिला प्रशासन और झंडा समिति के सदस्यों की भूमिका को भी सलाम। यह पर्व सिर्फ एक गाँव का नहीं, बल्कि सभी का है जो आस्था में विश्वास रखते हैं।