नीतीश कुमार विपक्षी एकता की रिव्यू के लिए एक बार फिर से विपक्षी दलों के नेताओं से मिलने की कवायद में जुट गए हैं. वह विपक्षी परिक्रमा-2 चला रहे हैं. वहीं कर्नाटक चुनाव में मिली प्रचंड जीत से अति उत्साहित कांग्रेस विपक्षी एकता के लिए भले आगे आई हो लेकिन वह अब विपक्षी नेताओं की ही अनदेखी कर रही है. कर्नाटक में सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव, वाय एस जगनमोहन रेड्डी और पी विजयन का नहीं नजर आना बहुत कुछ कह गया.
इस सब के बीच भी नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता को लेकर अपनी कोशिश नहीं छोड़ी है और वह 40 दिन के भीतर दूसरी बार अरविंद केजरीवाल से मिलने पहुंच गए. जबकि पहली मुलाकात के बाद ही आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया था कि लोकसभा का चुनाव पार्टी पूरे देश में अपने दम पर लड़ेगी. बची खुची कसर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बयान से पूरी हो गई थी. जब पीएम नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी और देश में किसी तीसरे फ्रंट की कोई जरूरत नहीं है.
वहीं अब केंद्र के द्वारा केजरीवाल सरकार के खिलाफ लाए अध्यादेश का समर्थन करने का तेजस्वी और नीतीश ने भरोसा तो दे दिया लेकिन बातों से साफ लगा कि इनके बीच बात यहीं तक सीमित रही विपक्षी एकता की मुहिम पर कोई बात नहीं हुई. वहीं अब ममता बनर्जी भी जल्द इस मामले को लेकर अरविंद केजरीवाल से मिलने वाली है.
बता दें कि दिल्ली सरकार के खिलाफ सर्विस आवंटन से जुड़े अध्यादेश को राज्यसभा में रोकने के लिए नीतीश और तेजस्वी से तो केजरीवाल की बात हो गई अब ममता से बात होनी है. इस सब के बीच सूत्रों की मानें तो कांग्रेस भी इस मामले पर आप का राज्यसभा में समर्थन कर सकती है. हालांकि कांग्रेस की तरफ से इसको लेकर कोई आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है.
कांग्रेस के साथ के बिना विपक्षी एकता की बात बेमानी है यह सभी विपक्षी दल मानते हैं लेकिन सभी को अपनी पार्टियों के लिए पर्याप्त सीटों की भी डिमांड रहेगी. कांग्रेस ने कर्नाटक में जितनी बड़ी जीत हासिल की है उसके बाद लगने लगा है कि अब कांग्रेस दूसरे दलों के साथ सीट बंटवारे के समय अपने हक की बात करने के काबिल बन गई है. ऐसे में कांग्रेस की इस प्रचंड जीत के बाद ममता के तेवर भी कांग्रेस को लेकर नर्म हुए हैं और वह 2024 के लोकसभा चुनाव को साथ लड़ने के लिए ग्रीन सिग्नल दे रही हैं.
ममता बनर्जी और अखिलेश यादव पहले कांग्रेस से अलग एक गठबंधन की बात पर टिके हुए थे. ममता और अखिलेश मिले भी थे. लेकिन इसके बाद नीतीश दोनों से मिले और माहौल बदल गया था. इस सब के बीच सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में ना तो अखिलेश और ना ही ममता नजर आईं. ऐसे में इन दोनों ने एक बार फिर विपक्षी एकता को रेड सिग्नल दिखा दिया. मायावती ने पहले ही अलग राह पकड़ ली है. 2018 में कर्नाटक में सरकार के गठन के समय जो विपक्षी जुटान हुआ था उससे इस बार कम ही जुटान विपक्षी नेताओं का नजर आया.
अब ममता बनर्जी और अखिलेश यादव की रुखाई की वजह जानिए. इन दोनों के राज्यों में इनकी पार्टी को कांग्रेस और भाजपा से सीधा मुकाबला है. इसलिए विपक्षी एकता से पहले ये नेता एकदम सधे कदम रख रहे हैं. वहीं नीतीश के फॉर्मूले एक सीट पर एक उम्मीदवार पर क्षेत्रीय दलों की कोशिश रहेगी कि वह अपने राज्यों में ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने लिए मांग सके. कांग्रेस की मौजूदा हालात में ऐसा संभव नहीं हो सकता है क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस की प्रचंड जीत ने उसके हौसले बुलंद कर रखे हैं.
ममता और नीतीश पहले कांग्रेस को पूरे देश में 200 सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत दे चुके हैं लेकिन अब क्या कांग्रेस इस पूरे फॉर्मूले से संतुष्ट होगी. शायद नहीं यही वजह है कि विपक्षी खेमे में एकजुटता की बात कभी खुशी कभी गम के हालत में तब्दील हो रही है.