वर्तमान हालात में यह डायलॉग नीतीश कुमार के जेडीयू पार्टी के लिए भी काफी प्रासंगिक है। शरद यादव, प्रशांत किशोर, आरसीपी सिंह और अब उपेंद्र कुशवाहा के बगावत के बाद अब यही लगता है कि “जेडीयू से सभी चले जायेंगे, बस ललन बचेगा।”
एक – एक करके जेडीयू से ललन सिंह के सभी प्रतिद्वंदी खत्म हो गए। नीतीश कुमार बस मुख्यमंत्री के खुर्सी तक सीमित हैं, संगठन अब पूरा ललन सिंह के कंट्रोल में है। पिछले साल सरस्वती पूजा का मौका था और पटना में उस रात एक हॉस्टल से जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह पूजा समारोह में शामिल होकर निकल रहे थे। हॉस्टल के बाहर रात के अंधेरे में नारे लगे, ‘बिहार का सीएम कैसा हो…ललन सिंह जैसा हो’। लोग इसे संयोग कह सकते हैं मगर ललन सिंह लगातार इस मिशन पर लगे हैं।
क्या यह भी संयोग है कि नीतीश के राजनीतिक विरासत पर हक जताने वाले हर नेता को पहले पार्टी में अलग- थलग किया गया और फिर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बाहर गए या बागी हुए हर नेता का आरोप है कि नीतीश कुमार के आस पास रहने वाले कुछ नेता उनको गलत सूचना देकर उनको संचालित करते हैं।
बिहार के राजनिति में पिछले कुछ समय से भूमिहार समाज की पूछ काफी बढ़ गई है। आर्थिक और सामाजिक रूप से शक्तिशाली भूमिहार समाज संख्या में मामले में बिहार के आबादी के मात्र 5% है मगर वो पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, जहानाबाद, बेगूसराय, नवादा, सीतामढ़ी, आरा में जीत-हार की ताकत रखते हैं।
भूमिहार वोटर बीजेपी के परंपरागत वोटर रहे हैं मगर हाल के दिनों में वो बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। मुजफ्फरपुर जिले के बोचहां विधानसभा उपचुनाव में उन्होंने अपनी नाराजगी दिखाते हुए राजद को वोट किया। इसके बाद सभी पार्टी इस वोट बैंक को अपने तरफ लुभाने में लगे हैं। इस मौके के लोभ में उत्साहित ललन सिंह अगर खुद को अगले सीएम के रूप में देखने लगे तो वो चौकने वाली बात नहीं होगी।
मगर ललन सिंह भी खबरदार रहें क्योंकि नीतीश सबके हैं। लालू यादव कहते थे कि नीतीश के पेट में दांत हैं। कब वो कौन सा चाल चल दे कोई बता नहीं सकता। वैसे भी नीतीश के अलावा जो भी जेडीयू का राष्ट्रिय अध्यक्ष बना है उसको नीतीश ने पार्टी से बाहर निकाल फेका है।