बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार जोरों पर है. सीधा मुकाबला दो गठबंधनों में है- जेडीयू और भाजपा का एनडीए Vs आरजेडी और कांग्रेस का महागठबंधन. साफ है कि कोई एक पार्टी इस स्थिति में खुद को नहीं पा रही है कि वह बिना सहारे के मैदान में उतरे. वो अलग बात है कि एक बड़ा तबका इस चुनाव को आरजेडी बनाम जेडीयू या भाजपा कह देता है. आज की पीढ़ी को शायद पता नहीं होगा कि एक दौर था जब कांग्रेस का बिहार में जलवा था. हम इसे गोल्डन पीरियड कह सकते है. वैसी जीत के लिए लालू प्रसाद यादव हों या नीतीश कुमार दोनों तरसते रहे. चुनावी माहौल में आइए 40 साल पीछे चलते हैं जब बिहार में कांग्रेस का राज था.
हां, आज के समय में उस दौर के बारे में सिर्फ सोचा जा सकता है क्योंकि 2025 में कांग्रेस आरजेडी के साथ उसकी सहयोगी बनकर चुनाव लड़ रही है. सीएम भी तेजस्वी यादव को प्रोजेक्ट करना पड़ा है. हालांकि 1985 से पहले कांग्रेस की बिहार में लहर चलती थी और विपक्ष काफी पीछे खड़ा दिखता था. वैसी पकड़ न लालू प्रसाद यादव बना सके और न नीतीश कुमार.
जब भी जीती कांग्रेस…
कांग्रेस जब-जब जीती अंतर बहुत ज्यादा ही रहा. 1952 के चुनाव में कांग्रेस को 41 प्रतिशत वोट मिले थे और दूसरे नंबर पर रहे गठबंधन को महज 26 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा था. इसी तरह 1957 में कांग्रेस ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और 42 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए. जीत का मार्जिन 26 प्रतिशत से ज्यादा रहा. 1962 का चुनाव आया तो कांग्रेस को 41.35 प्रतिशत वोट मिले औ जीत का मार्जिन 24 प्रतिशत बना रहा. 1967 में कांग्रेस फिसली फिर भी 33 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रही. उस चुनाव में जीत का मार्जिन घटकर 17 प्रतिशत के करीब रह गया था. इसके बाद धीरे-धीरे दूसरी पार्टियों का दबदबा बढ़ा तो कांग्रेस का मार्जिन भी घटता गया. 1969 में चुनाव होते हैं तो कांग्रेस को 31 प्रतिशत वोट मिले, 1972 में 33 प्रतिशत और 1980 के चुनाव में आंकड़ा 34 प्रतिशत को पार कर जाता है.
कांग्रेस के लिए आखिरी बेहतरीन प्रदर्शन 1985 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला था तब पार्टी को करीब 40 प्रतिशत वोट मिले थे और मार्जिन 25 प्रतिशत के करीब था. लोकदल को 15 प्रतिशत के करीब वोट मिले थे. कांग्रेस के प्रदर्शन की लालू के दौर और नीतीश के करीब 20 साल के कार्यकाल से तुलना करें तब पता चलता है कि वे कहां पीछे रह गए.
लालू का दौर आया
– 1990 के चुनाव में जनता दल को 26 प्रतिशत के करीब वोट मिले और कांग्रेस 25 प्रतिशत वोट के साथ कड़ी चुनौती देती दिखी. जीत का मार्जन एक प्रतिशत से भी कम था.
– 1995 के चुनाव में जनता दल को 28 प्रतिशत वोट मिले और भाजपा दूसरे नंबर पर 13 प्रतिशत वोटों के साथ रेस में आती दिखी. जीत का मार्जिन 15 प्रतिशत से ज्यादा रहा.
– 2000 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 30 प्रतिशत के करीब वोट मिले और राजद केवल 0.51 प्रतिशत के मार्जिन से पीछे रही.
अब आया नीतीश का दौर
– 2005 के चुनाव में एनडीए गठबंधन को 26 प्रतिशत वोट नहीं मिले. राजद 0.45 प्रतिशत के मार्जिन से पिछड़ गया. कांग्रेस को मात्र 10 सीटें मिल पाई थीं. किसी को न बहुमत मिला और न गठबंधन सरकार बन पाई.
– इसी साल राज्य में अक्टूबर-नवंबर में दोबारा चुनाव कराए गए. इस बार एनडीए 37 प्रतिशत वोटों के साथ उभरा और आरजेडी को 32 प्रतिशत वोट मिले.
– 2010 के चुनाव में एनडीए को 39 प्रतिशत और राजद को 26 प्रतिशत वोट मिले. इसमें वोट ज्यादा मिले लेकिन किसी एक पार्टी को नहीं.
– 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को 42 फीसदी, एनडीए को 34 फीसदी वोट मिले. यहां भी गठबंधन से ही काम हुआ.
– 2020 के चुनाव में एनडीए को 37.26 प्रतिशत और महागठबंधन को 37.23 प्रतिशत वोट मिले. मार्जिन महज 0.03 प्रतिशत रहा था.

