रांची. झारखंड की सियासत में तीसरे मोर्चे की एंट्री ने राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है. तीसरे मोर्चे का नाम लोकतांत्रिक मोर्चा रखा गया है और इसी नाम से राजनीति के नये खेल की शुरुआत होने की संभावना है. मोर्चा में तीन दलों के पांच विधायक शामिल हैं. मोर्चा गठन के पीछे की राजनीति क्या है, इसको लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. गौर करने वाली बात ये है कि हर कयास में भविष्य की राजनीति का दम दिखता है.
5 राज्यों के चुनावी परिणाम के बाद झारखंड की सियासत में तीसरे मोर्चे का खेल शुरू हो गया है. वैसे तो इस मोर्चे में शामिल होने वाले तीन दलों के 5 विधायक पहले से अपनी राजनीतिक पारी खेल रहे हैं, पर इनकी नई एकजुटता ने राजनीति के जानकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया है. राजनीतिक गलियारों में इस मोर्चे के गठन के कई मायने और मतलब निकाले जा रहे हैं. साथ ही इस मोर्चे के हिडेन एजेंडा पर भी राजनीतिक चर्चा तेज हो गई है.
झारखंड में तीसरे मोर्चे के गठन से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. लोकतांत्रिक मोर्चे में तीन दलों के 5 विधायक शामिल हैं. इसमें सुदेश महतो, लंबोदर महतो, सरयू राय, अमित यादव और कमलेश सिंह ने एकजुटता दिखाई है. लोकतांत्रिक मोर्चा गठन के उद्देश्य को समझने की जरूरत है. कहने को तो सदन के अंदर चर्चा के दौरान विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा आवंटित समय में भागीदारी को बढ़ाना है, ताकि किसी भी विषय पर बोलने का ज्यादा से ज्यादा समय मिल सके. वहीं जून माह में होने वाले राज्यसभा चुनाव पर लोकतांत्रिक मोर्चे की भी नजर रहेगी. NDA से एक पूर्व मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने की स्थिति में उनके धुर विरोधी की एकजुटता के नजरिये से भी इस मोर्चा को देखा जा रहा है.
राज्यसभा चुनाव में मोर्चे में शामिल पांचों विधायकों के निर्णय से जीत- हार पर असर पड़ना तय है. राज्यसभा चुनाव में एक- एक वोट का अपना अंक गणित होता है. सियासी जानकार इसे झारखंड में ऑपरेशन कमल के हिडेन एजेंडा से जोड़कर भी देख रहे हैं. मोर्चा में शामिल 5 विधायक में से 4 NDA से कभी ना कभी नाता रखने वाले हैं.
बीजेपी के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार का कहना है कि लोकतांत्रिक मोर्चे में 5 में से 4 विधायक NDA खेमे के हैं. आने वाले समय में उनकी क्या भूमिका होगी, ये देखने वाली बात होगी. राज्यसभा चुनाव एक जरूर मुद्दा हो सकता है, पर इस बात को भी स्पष्ट करने की जरुरत है कि वो एक साथ दो मोर्चे में क्या करेंगे और उनकी क्या भूमिका होगी.
झारखंड की राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है. ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि झारखंड का राजनीतिक इतिहास कह रहा है. इससे पहले भी निर्दलीय विधायकों ने G- 5 का गठन किया था. तब किसी को कुर्सी गवानी पड़ी थी और किसी को राज सिंहासन पर बैठाया गया था. अगर ऐसा कुछ भी चल रहा है तो ऑपरेशन कमल से इनकार नहीं किया जा सकता है. ऑपरेशन कमल का जिक्र होते ही सबकी नजर कांग्रेस की तरफ जाती है. शायद राजनीति में सबसे कमजोर कड़ी के तौर पर फिलहाल कांग्रेस को ही आंका जा रहा है.
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राकेश सिन्हा का कहना है कि फिलहाल कांग्रेस खुद को एकजुट रखने और संगठन को मजबूत करने में जुटी है. चिन्ता की बात उनके लिये है, जो NDA से राज्यसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. उनको रोकने के लिये ही इस मोर्चे का निर्माण हुआ है.
राजनीति में हर निर्णय को भविष्य के साथ जोड़ कर देखा जाता है. खासकर तब जब बड़े नेताओं का जुटान या मोर्चा बंदी हो. झारखंड में लोकतांत्रिक मोर्चा की दिशा और दशा क्या होगी, ये तो भविष्य के गर्भ में है, पर एक बात जरूर है कि चैन की नींद सो रहे सियासतदारों को तीसरे मोर्चे ने सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया है.