सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त उपहार से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान मामले को तीन जजों की बेंच को रेफर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमण की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि यह दलील दी गई है कि 2013 में दो जजों की बेंच ने बालाजी से संबंधित वाद में फैसला दिया था। उसे दोबारा देखने की जरूरत है साथ ही कई जटिल सवाल सामने आए हैं। ऐसे में मामले को तीन जजों की बेंच को रेफर किया जाता है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में कई जटिल सवाल हैं जिन पर विस्तार से बहस जरूरी है। साथ ही अर्जी में कहा गया है कि बालाजी संबंधित वाद में दिए गए फैसले को पलटा जाए। ऐसे में हम मामले को तीन जजों को रेफर करते हैं। मामले को सुनवाई के लिए चार हफ्ते बाद लिस्ट किया जाएगा। चीफ जस्टिस रमण ने इस दौरान कहा कि मामले में जो मुद्दे उठाए गए हैं और पक्षकारों ने जो सवाल उठाए हैं उस पर विस्तार से सुनवाई की दरकार है। पहले यह देखना है कि कितना ज्यूडिशियल दखल का स्कोप है। क्या कोर्ट द्वारा एक्सपर्ट बॉडी बनाने से उद्देश्य पूरा होगा? इस तरह के तमाम मुद्दे को पहले देखने की जरूरत है।
पक्षकारों ने दिया बालाजी जजमेंट का हवाला
सुप्रीम कोर्ट में तमाम पक्षकारों ने मुफ्त उपहार से संबंधित मामले में 2013 के बालाजी जजमेंट का हवाला दिया है जिसमें दोबारा विचार करने की दलील दी गई है। बालाजी वाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह की प्रैक्टिस को करप्ट प्रैक्टिस नहीं कहा जा सकता है। मामले में दो जजों का फैसला था। साथ ही मौजूदा मामले की सुनवाई के दौरान कई जटिल प्रश्न ( मुफ्त उपहार और वेलफेयर स्कीम को लेकर तमाम जटिल प्रश्न) सामने आए हैं ऐसे में मामले को तीन जजों को रेफर किया जाता है। मामले की सुनवाई के दौरान याची बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से गुहार लगाई गई है कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह राजनीतिक पार्टियों को मुफ्त उपहार के वादे करने से रोके और नियम तोड़ने वाली पार्टी की मान्यता रद्द हो।
बालाजी संबंधित वाद में क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील विकास सिंह ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सुब्रह्मण्यम बालाजी बनाम तामिलनाडु राज्य मामले में जो फैसला दिया था उस पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। तब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राजनीतिक पार्टी चुनावी घोषणा पत्र में जो वायदा करती है वह करप्ट प्रैक्टिस नहीं है और रिप्रजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट की धारा-123 में चुनावी घोषणा पत्र का वादा करप्ट प्रैक्टिस की श्रेणी में नहीं है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीएजी यह तय नहीं कर सकती है कि सरकार किस तरह से पैसे का खर्च करे और कहां खर्च करे। साथ ही अदालत इसको लेकर गाइडलाइंस नहीं बना सकती है कि क्या चुनावी वादे होना चाहिए।
क्या है याचिका
चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने या मुफ्त उपहार देने का वादा करने वाले राजनीतिक पार्टियों की मान्यता रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा सरकारी फंड से चुनाव से पहले वोटरों को उपहार देने का वादा करने या उपहार देने का मामला स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करता है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अर्जी दाखिल कर केंद्र सरकार और भारतीय चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाया गया है और अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि पब्लिक फंड से चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने का वादा करने या मुफ्त उपहार बांटना स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है और यह वोटरों को प्रभावित करने और लुभाने का प्रयास है। इससे चुनाव प्रक्रिया प्रदूषित होती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे चुनाव मैदान में एक समान अवसर के सिद्धांत प्रभावित होते हैं। याची ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त उपहार देने और वादा करना वोटरों को लुभाने का प्रयास है और यह एक तरह की रिश्वत है। कांग्रेस, आप और डीएमके आदि ने कहा जो लोग हासिये पर हैं उनके उत्थान के लिए किया गया कार्य वेलफेयर है न कि मुफ्त उपहार।
कल्याण वाली स्कीम मुफ्त उपहार नहीं
सुप्रीम कोर्ट में आम आदमी पार्टी की ओर से कहा गया है कि सरकार जो लोगों के कल्याण के लिए स्कीम चलाती है उसे मुफ्त उपहार नहीं कह सकते हैं। संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांत हैं जिसके तहत राज्य को सामाजिक और वेलफयेर प्रोग्राम चलाने हैं ताकि देश में सामाजिक संतुलन कायम हो और हर तबके को बुनियादी सुविधाएं मिल सके। जिनमें गरीब कामगारों को कम कीमत पर भोजन या फ्री भोजन के लिए कैंटीन की सुविधाएं वेलफेयर स्कीम है। नाइट शेल्टर की व्यवस्था, कम कीमत या फ्री में पाने का पानी, बेसिक हेल्थकेयर, 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा, जो भोजन की व्यवस्था नहीं कर सकते उन्हें फ्री रासन, मिड डे मिल, महिलाओं को फ्री ट्रांसपोर्टेशन आदि शामिल है। चुनाव में वोटरों को लुभाने के लिए बांटे जाने वाले मुफ्त उपहार के खिलाफ दाखिल याचिका हस्तक्षेप याचिका दायर करते हुए कांग्रेसी नेता जया ठाकुर ने कहा है कि राजनीतिक पार्टी अगर सब्सिडी देती है तो वह सही है क्योंकि वह संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करते हैं।