चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर ने खूब नाम कमाया. नरेंद्र मोदी अगर आज प्रधानमंत्री हैं तो इसमें पीके का बड़ा योगदान है. उन्होंने एमके स्टालिन को सीएम बनाया. नीतीश कुमार और ममता बनर्जी को भी चुनाव जितवाया. यहां तक जब कांग्रेस के लिए काम किया तो उसे भी जीत मिली. लेकिन पीके जब खुद चुनावी पिच पर उतरे तो ‘हिट विकेट’ हो गए.
बतौर पार्टी संयोजक उनका चुनाव प्रबंधन फेल पहली परीक्षा में ही फेल हो गया. पीके ने पहले उम्मीदवार के चयन में जल्दबाजी दिखाई, अब उम्मीदवारों की डिग्री पर सवाल उठ रहे हैं. दरअसल, पढ़े-लिखे युवाओं को मौका देने की बात कहने वाले प्रशांत किशोर को जब अपनी पार्टी जन सुराज में कैंडिडेट उतारने का मौका मिला तो वह भी बिहार की राजनीतिक बयार में बह गए.
खास तो ये है कि प्रशांत किशोर उन्हें शिशु रोग विशेषज्ञ यानी ‘डॉक्टर’ बताते रहे हैं. जितेंद्र पासवान ने अपने चुनावी हलफनामे पर शैक्षिक योग्यता ‘इंटरमीडिएट’ बताई है. इंटरमीडिएट होकर ही वह ‘डॉक्टर’ भी बन गए और साहब ‘शिशु रोग विशेषज्ञ’ भी हो गए. इंटर पास व्यक्ति ‘डॉक्टर’ कैसे बना, ये बड़ा सवाल है.
मतलब साफ है कि पीके ‘झोलाछाप डॉक्टर’ को प्रमोट कर रहे हैं. जितेंद्र पासवान ‘डॉक्टर’ कैसे बनें, इसका जवाब उन्होंने खुद दिया है. उन्होंने कहा कि मैं बीएचएमडी शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर चौधरी राजनंदन प्रसाद के साथ 10 साल रहा. वे शिशु रोग विशेषज्ञ थे, मैं 10 साल साथ रहा, तो मैं भी शिशु रोग विशेषज्ञ हुआ. उनके जवाब से लाखों रुपये खर्च करके MBBS की पढ़ाई करने वाले छात्र तो हैरान हो जाएंगे