सीतामढ़ी, बिहार। — कभी शहर की शान और जीवनरेखा मानी जाने वाली लक्ष्मणा नदी आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। शहर की बढ़ती आबादी और लापरवाह शहरी व्यवस्था ने इस नदी को गंदगी और अतिक्रमण के दलदल में धकेल दिया है।
स्थानीय नागरिकों के अनुसार, बीते कुछ वर्षों में नदी के किनारों पर तेज़ी से अवैध निर्माण बढ़े हैं। कई जगह मकान, गोदाम और अस्थाई दुकानों ने नदी की प्राकृतिक चौड़ाई को सिकोड़ दिया है। इससे न सिर्फ जल प्रवाह बाधित हुआ है, बल्कि बरसात के दिनों में जलजमाव और बाढ़ की स्थिति भी अधिक गंभीर हो जाती है।
शहर के नालों और सीवरेज का गंदा पानी भी सीधे नदी में गिराया जा रहा है। नतीजतन, लक्ष्मणा नदी अब साफ़ जलधारा की जगह एक बड़े नाले में तब्दील होती जा रही है। नदी में फैलती दुर्गंध न सिर्फ पर्यावरण को प्रभावित कर रही है, बल्कि आसपास के बस्तियों के लोगों के लिए स्वास्थ्य खतरा भी बन चुकी है।
स्थानीय सामाजिक संगठनों और पर्यावरण प्रेमियों ने प्रशासन से कई बार नदी की सफाई और पुनर्संरक्षण की मांग की है। लेकिन अब तक ठोस कार्रवाई न होने से लोगों में नाराज़गी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते नदी तटों से अतिक्रमण हटाकर और नालों के गंदे पानी को नदी में जाने से रोका नहीं गया, तो आने वाले वर्षों में लक्ष्मणा नदी केवल इतिहास के पन्नों में ही रह जाएगी।
शहरवासियों की आशा है कि प्रशासन इस दिशा में जल्द कदम उठाएगा और सीतामढ़ी की इस जीवनरेखा को फिर से स्वच्छ और जीवंत रूप में देखने का अवसर देगा।

