कुछ समय पहले बिहार से सटे नेपाल में Gen Z पीढ़ी के लोगों ने जोरदार अंदाज में विरोध प्रदर्शन करते हुए तख्तापलट दिया था. फिर लद्दाख में भी प्रदर्शन के दौरान Gen Z पीढ़ी चर्चा में आई थी. इसके बाद बारी बिहार के विधानसभा चुनाव में थी और Gen Z पीढ़ी के कई युवा चुनावी समर में उतरे. उन्होंने दिग्गज चेहरों को कड़ी चुनौती भी दी, जिसमें कुछ कामयाब हुए तो कुछ नाकाम. इसी पीढ़ी की मैथिली ठाकुर ने इतिहास रच दिया और बिहार की सबसे युवा विधायक का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया.
बिहार में 2025 का चुनाव कई मायनों में बेहद खास रहा. पहले यहां पर रिकॉर्डतोड़ वोटिंग ने नया कीर्तिमान रच दिया. फिर एनडीए ने सभी को चौंकाते हुए 243 सीटों में से 202 सीटों पर कब्जा जमा लिया. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की अगुवाई वाले महागठबंधन का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और वह महज 35 सीटों पर ही सिमट गई.
25 की होते ही विधायक बनीं मैथिली ठाकुर
स्मार्ट फोन के दौर में युवा होने वाली यह पीढ़ी इन दिनों लगातार चर्चा में है. Gen Z के रूप में यह नई पौध बिहार के चुनावी जंग में भी उतरी. जुलाई में ही 25 साल की होने वाली भोजपुरी गायिका मैथिली ठाकुर इस पीढ़ी की सबसे चर्चित चेहरा रहीं. 25 की होने के कुछ समय बाद मैथिली पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुईं और फिर पार्टी ने उन्हें दरभंगा जिले की अलीनगर सीट से टिकट भी दे दिया.
बिहार चुनाव परिणाम में सभी की नजर Gen Z पीढ़ी पर भी लगी थी. Gen Z यह वह युवा पीढ़ी है जिनकी पैदाइश 1997 से 2012 के बीच हुई. इन्हें डिजिटल नेटिव्स (digital natives) भी कहा जाता है. इंटरनेट और स्मार्टफोन के दौर में बड़े होने वाली पहली पीढ़ी है. 25 से 28 साल के बीच के 4 युवा ऐसे थे जो चुनाव मैदान में उतरे.
कम उम्र में ही भोजपुरी गाना गाने से मशहूर हुईं मैथिली ठाकुर को बीजेपी ने अलीनगर सीट से उतारा. शुरुआत में उनकी उम्मीदवारी को लेकर नाराजगी जताई जा रही थी. लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया. काउंटिंग के दौरान शुरुआती दौर में एक-दो बार पिछड़ने के बाद उन्होंने बढ़त बनानी शुरू की और खत्म जीत के साथ किया. मैथिली को 11,730 मतों के अंतर से जीत हासिल हुई.
मैथिली ठाकुर को 84,915 वोट मिले तो उनके करीबी प्रत्याशी राष्ट्रीय जनता दल के बिनोट मिश्रा को 73,185 वोट आए. देश में चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र 25 साल है और वह उम्र के इसी पड़ाव पर जीत हासिल कर विधायक बन गईं.
क्या पति की सीट बचा पाईं रवीना कुशवाहा
इसी तरह एक अन्य चर्चित Gen Z चेहरा रहीं रवीना कुशवाहा. मैथिली जहां गैर राजनीतिक परिवार से नाता रखती हैं, वहीं रवीना का संबंध राजनीतिक परिवार से था. उनके पति 53 साल के राम बालक कुशवाहा कई बार विधायक रह चुके हैं. कोर्ट के फैसले की वजह से राम बालक चुनाव नहीं लड़ सकते थे. लिहाजा उन्होंने अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के टिकट दिलवा दिया.
रवीना कुशवाहा महज 27 साल की हैं और उन्होंने पिछले साल राम बालक से शादी कर ली थी. वह 2010 और 2015 में विधायक चुने गए. लेकिन 2020 में उन्हें हार मिली. इस बार रवीना ने समस्तीपुर की विभूतिनगर सीट से दावेदारी पेश की. काउंटिंग के दौरान उन्होंने बढ़त भी बनाई, लेकिन जीत हासिल नहीं कर सकीं. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम) के प्रत्याशी अजय कुमार ने 10,281 मतों के अंतर से चुनाव में जीत हासिल कर ली. इस हार के साथ रवीना का अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने का सपना टूट गया.
बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी का क्या
मैथिली ठाकुर की तरह 27 साल की शिवानी शुक्ला पर भी सभी की नजर थी. एक तो वह Gen Z पीढ़ी की हैं, साथ में उनका नाता राजनीतिक परिवार से भी है. उनके पिता बाहुबली मुन्ना शुक्ला हैं और वह भी राजनीति में सक्रिय रहे हैं. लेकिन पिता की दमदार छवि और धुंआधार प्रचार भी शिवानी को जीत नहीं दिला सकी.
वैशाली जिले की चर्चित लालगंज सीट से चुनाव लड़ने वाली शिवानी को भी करारी हार का सामना करना पड़ा. उन्हें 32,167 मतों के अंतर से हार मिली. बीजेपी के संजय कुमार सिंह को 1,27,650 वोट मिले तो आरजेडी के टिकट से चुनाव लड़ने वाली शिवानी को 95,483 को वोट आए. उन्होंने लंदन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स से LLM की डिग्री हासिल की. इससे पहले उन्होंने बेंगलुरु से बीए-एलएलबी की पढ़ाई पूरी की.
कड़े संघर्ष में हार गए मम्मी-पापा की सीट
इसी तरह भोजपुर जिले की संदेश सीट पर भी Gen Z प्रत्याशी मैदान में उतारा. 28 साल के दीपू सिंह यादव भी एक राजनीतिक परिवार से नाता रखते हैं. उनके बड़े पापा, पापा और मम्मी सब के सब लगातार विधायक रहे और वह भी संदेश सीट से. उनके पिता अरुण यादव ने साल 2015 और मां किरण देवी में 2020 में चुनाव में विजयी हुए थे. इससे पहले दीपू के ताऊ वीरेंद्र यादव भी 2 बार विधायक चुने गए.
लेकिन दीपू अपने परिवार की विरासत को संभाल कर नहीं रख सके. हालांकि बात यह भी है कि संदेश में मुकाबला बेहद ही कांटे का रहा. हार-जीत का अंतर महज 27 वोटों का आया. राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर मैदान में उतरे दीपू को 80,571 वोट मिले. उनके करीबी प्रतिद्वंद्वी जनता दल यूनाइटेड के राधा चरण साह को 80,598 वोट मिले. इस तरह से वह जीत से महज 27 वोटों से दूर रह गए
युवाओं के लिए अनलकी बना 29वां साल
इनके अलावा प्रमुख राजनीतिक दलों ने उन चेहरों को भी मौका दिया जो Gen Z के बेहद करीब हैं. ये 30 से कम उम्र वाले युवा हैं. मैदान में उतरे 29 साल के तीनों प्रत्याशियों को जीत नहीं मिली. आरजेडी के टिकट पर उतरे 29 साल के रविरंजन को नालंदा जिले की अस्थावां सीट से 40,708 मतों के अंतर से हार मिली. यहां पर जेडीयू के जीतेंद्र कुमार विजयी हुए.
गोपालगंज जिले की भोरे सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI(ML-L) ने 29 साल के धनंजय कुमार को उतारा था. उन्होंने भी कड़ा मुकाबला किया लेकिन जेडीयू के सुनील कुमार के हाथों हार गए. सुनील ने 16,163 मतों के अंतर से यह मुकाबला जीत लिया.
राजधानी पटना की फतुहा विधानसभा सीट से लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने 29 साल की रुपा कुमारी को खड़ा किया था. लेकिन उन्हें भी हार मिली. आरजेडी के डॉक्टर रामानंद यादव ने 7,992 मतों के अंतर से चुनाव जीत लिया.
30 के तीनों प्रत्याशियों को मिली जीत
इसी तरह 30 साल की उम्र के भी 3 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे. जेडीयू की ओर से मुजफ्फरपुर जिले की सकरा सीट से उतरे 30 साल के आदित्य कुमार ने 15,050 वोटों से चुनाव जीत लिया. गायघाट सीट से युवा प्रत्याशी कोमल कुशवाहा भी 23 हजार से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं.
वहीं भोजपुर जिले की शाहपुर सीट से बीजेपी की ओर से मैदान में उतरे 30 साल के राकेश रंजन को भी जीत का स्वाद चखने का मौका मिला. राकेश 15,225 वोटों के साथ विधायक बनने में कामयाब रहे.

