भारतीय रिजर्व बैंक ने सोमवार को फ्रॉड रिस्क मैनेजमेंट को लेकर एक बड़ा फैसला किया है. आरबीआई ने सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को शामिल करने के लिए बैंकिंग से जुड़े गाइडलाइन में बदलाव किया है. इसके तहत अब बैंक को किसी अकाउंट को डिफॉल्टर कैटेगरी में डालने से पहले कर्जदारों का पक्ष सुनना होगा.
बता दें कि आरबीआई ने बैंकिंग सिस्टम को ग्राहकों के लिए आसान बनाने के लिए यह बड़ा कदम उठाया है.
उल्लेखनीय है कि एसबीआई बनाम राजेश अग्रवाल मामले में, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने किसी खाते को धोखाधड़ी की श्रेणी में डालने से पहले कर्ज लेने वाले की बातों को सुने जाने के उसके अधिकारों की वकालत की.
मनमाने तरीके से खातों को नहीं कर पाएंगे डिफॉल्टर घोषित
इससे पहले लोन लेने वालों से रिकवरी के नाम पर कुछ नोटिस भेजकर बैंक अक्सर उनको डिफॉल्टर घोषित कर देता था. हालांकि अब लेंडर मनमाने तरीके से खातों को डिफॉल्टर नहीं घोषित कर पाएंगे.आरबीआई ने सभी ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को साफ कह दिया है कि किसी भी बकायदार को एक तरफा डिफॉल्ट घोषित नहीं किया जा सकेगा और कर्जदारों को अपनी सफाई पेश करने का मौका दिया जाएगा.
RBI के फैसले का बैंकिंग सेक्टर पर क्या होगा असर?
जानकारों का कहना है कि आरबीआई के इस निर्देश का बैंकिंग सेक्टर पर बड़ा असर होगा. इससे बैंकों को अपना इंटरनल ऑडिट सिस्टम मजबूत करना होगा और वह मनमानी तरीके से कस्टमर पर एक्शन नहीं ले पाएंगे. इसी के चलते लेंडर हर तरह के अपडेट संबंधित अथॉरिटी को समय-समय पर देता रहेगा.
जानें क्या-क्या होगा बदलाव?
आरबीआई के इस फैसले से न सिर्फ कस्टमर के लिए चीजें बदल जाएंगी बल्कि बैंकों के लिए भी कई तरह के बदलवा होंगे. इसके तहत बैंकों को एक फ्रॉड रिस्क मैनेजमेंट बनाना होगा जो की बोर्ड से अप्रूव्ड होगा.बैंक अब धोखाधड़ी में शामिल संस्थाओं, प्रमोटर्स और डायरेक्टर्स को कारण बताओं नोटिस जारी करेगा और नोटिस भेजा जाने के बाद जवाब देने के लिए कम से कम 21 दिनों का समय देना होगा.
इतना ही नहीं, बैंक किसी खाते को फ्रॉड घोषित करने के लिए डिटेल में वजह बताएगा. वहीं, बैंकों को इस मामले की निगरानी और फॉलो के लिए खास टीम बनाने का भी निर्देश दिया गया है.