यह तस्वीर सीरिया से आई है। भीषण भूकम्प के कारण तुर्की और सीरिया में लगभग दो हजार बड़ी इमारतें ध्वस्त हो गईं। उन्ही के मलबे में ये भाई- बहन मिले जो सत्रह घण्टे तक दबे रहने के बाद जीवित निकाले गए हैं।बहन भाई से कोई दो तीन साल बड़ी होगी। इस दो तीन वर्ष के अंतर ने ही उस नन्ही बच्ची इतना बड़ा कर दिया है कि खुद बड़े पत्थर के नीचे फंसे होने के बाद भी छोटे भाई के सर पर हाथ रख कर सत्रह घण्टे उसे हौसला देती रही है।
जितना मैं समझ रहा हूँ, यदि यह लड़की अकेली दबी होती तो टूट गयी होती। छोटे भाई को बचाने की जिद्द ने ही उसकी भी रक्षा की है। जिम्मेवारी का एहसास मनुष्य को बहुत शक्तिशाली बना देता है। वह दायित्वबोध ही इस लड़की की शक्ति थी।दोनों के चेहरे पर भावों में अंतर देखिये। लड़के के चेहरे पर भय है, पीड़ा है। वह लगातार रोता रहा है। पर लड़की के चेहरे पर शान्ति और साहस का भाव है। जैसे उसे पता हो कि उसे रोना नहीं है। वह जानती हो कि वह रोने लगे तो छोटा भाई मर जायेगा। सो वह रोई नहीं है, बल्कि लगातार लड़ती रही है।
भयभीत होने के बावजूद खुद को मजबूत बनाए रखना बहुत बड़ी बात है। वह भी तब, जब आपकी आयु केवल सात वर्ष हो और अब तक माता पिता के संरक्षण में जीवन बीता हो।
मैंने असँख्य बार अनुभव किया है, भाइयों के लिए बहने सदैव दीवार बन जाती हैं। भरोसा रखिये तो जीवन में उतना मानसिक सम्बल और कोई नहीं दे पाता जितना बहनें दे जाती हैं। ऐसा क्यों है यह मुझे नहीं पता, पर यह जरूर है कि भाई- बहन से अधिक स्नेहिल रिश्ता कोई नहीं।
यह जो प्रेम है न वह विपत्ति के समय और अधिक प्रगाढ़ हो जाता है। सामान्य दिनों में एक दूसरे से लड़ते रहने वाले भाई बहन विपत्ति के पलों में एक दूसरे के लिए कुछ भी कर जाते हैं।
भागदौड़ भरी दुनिया में ये बच्चे आश्चर्यजनक गति से एक दिन ओझल हो जाएंगे। लोग इन्हें भूल जाएंगे, पर इस भाई की स्मृति में सदैव अंकित रहेगा कि दुनिया में कमज़ोर मानी जाने वाली हथेलियों ने कभी उसके जीवन की डोर को सबसे कठिन समय में थामे रक्खा। उसके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण याद उसकी नन्ही बहन का सहारा ही होगी।